कोई लौटा दे वो बचपन के दिन
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!दौडा करते थे सारा सारा दीन
कभी टायरों के चक्कों के पीछे
कभी उड़ते हवाई जहाज के नीचे
रोज होती थी अमराई की सैर
खाते थे झाडी की खट्टी मिट्ठी बेर l
कोई लौटा दे वो बचपन के दिन
मस्ती करते थे सारे सारे दिन
खुश होते थे दादी की अठन्नी में
मिठास बड़ी थी छोटी पीपरमेंट में
नाना-नानी के घर की बात निराली
गर्मीयों की छुट्टी भी कम पड जाती l
कोई लौटा दे वो बचपन के दिन
खाया करते थे सारा सारा दिन
गाँव की नदी में जी भरके नहाना
खुले खेतो से ईख तोड़कर खाना
कच्ची पक्की अमरुद का मिठास
रेत के पानी से मिटती थी प्यास l
कोई लौटा दे वो बचपन के दिन
खेला करते थे सारा सारा दिन
कबड्डी, खो-खो और कंचे खेल
खूब झगड़ते तुरंत हो जाता मेल
दोस्तों के संग करें खूब सैतानी
रात में सोते थे सुनकर कहानी l

कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
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