प्रथम गुरु मात-पिता को, महिमा बड़ी महान है,
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!दीन्हों काया सरूप शरीरा, जगत में पहचान है ।
बिन विद्या नर पशु सामना, पावक बिन प्राण है,
गुरु महिमा पड़ी जीव पर, धन्य हुई यह जान है ।
अक्षर ज्ञान की तपिश से, काया कर दी निर्मल,
साक्षर कर ससक्त बना, कर दिए समर्थ सबल ।
गुरु ज्ञान बिन जीवन थोथा, साहिल बिन है नौका,
विद्यादान कर मनुष्य बनाया, जीनेका मिला मौका ।
गुरु प्रताप से ईश को चीन्हों, मिला प्रभु नाम,
कृपा गुरु की मिली जब से, मिला जीवन दाम ।
ज्ञान ध्यान संस्कार और जगत का पुरुषार्थ,
ये गुण जीवन में है दीन्हों चला दिया परमार्थ ।
मात-पिता से ऊपजी काया, गुरु से मिला ज्ञान,
कुटुंब कबीला से प्यार मिला, ज्ञान से सम्मान ।
गुरुवर मिले नर रूप में, ईश मिले गुरुवर रूप,
गुरु प्रताप से आनंद मिले, जीवन स्वर्ग स्वरूप ।

कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
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