"कल्पनाएँ बचपन की" – Yaksh Prashn
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“कल्पनाएँ बचपन की”

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जब मैं छोटी बच्ची थी

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सोचा ऐसा करती थी

मम्मी जैसा यदि होती,

अपनी मन की करती l

 

न कोई पढ़ाई लिखाई,

न कोई स्कूल जाना

खाना में भी अपनी पसंद,

खुद खाती सबको खिलाती l

 

नई-नई साडी पहनकर,

सैर सपाटे घूमने जाती

यही सोचकर अक्सर मैं,

ये सपनो में मैं खो जाती l

 

अब जब मैं बड़ी हो गई,

आज खुद मम्मी हो गई

काम जिम्मेदारी से हरदम,

दिनभर फुर्सद मिलती नहीं l

 

काश मैं फिर से बच्ची होती,

नाचती गाती करती ठितोली

मन करता है मैं फिर से,

अपने बचपन में चली जाती l

कवि –

श्री मति पुष्पा कोलारे

भोपाल, मध्यप्रदेश

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