संकलन- गोंडवाना इतिहास में नागपुर शहर की स्थापना गोंडवाना के महान शासक राजा बख्त बुलंद शाह उइका का जन्मदिन 30 जुलाई को मनाया गया l गोंड साम्राज्य की महान एवं पुरानी संस्कृति के संरक्षक और प्रगति के लिए गोंड शासको की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है गोंडवाना की स्थापना में इनका योगदान एवं संघर्ष भुलाया नहीं जा सकता है l नागपुर महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर है और नागपुर भारत के मध्य में स्थित है। नागपुर शहर की स्थापना गोंडवाना के महान शासक राजा बख्त बुलंद शाह उइका ने सन 1702-03 ईस्वी में की थी। कहा जाता है कि राजा बख्त बुलंद शाह उइका ने नागपुर शहर का नाम यहाँ पर बहने वाली नाग नदी के कारण इस शहर का नाम रखा और ये भी कहा जाता है कि यहाँ पर नाग साँप बहुत पाये जाते थे इस कारण से नागपुर शहर का नाम नागपुर रखा गया। लेकिन बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने नागपुर में धम्म दीक्षा देते वक्त बताया था कि नागपुर शहर में नागवंशीय गोंड राजाओं का प्रचीन काल से इतिहास था इसलिए गोंड राजा बख्त बुलंद शाह उइका ने इस शहर का नाम नागपुर रखा। आइये जानते हैं बख्त बुलंद शाह के बारे में- आज से लगभग 319 साल पूर्व याने 1702 ईस्वी में नागपुर नगरी की स्थापना गोंड राजा बख्त बुलंद शाह ने की थी।
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गोंड राजा बख्त बुलंद शाह नागपुर शहर बसाने से पहले देवगढ़ के राजा थे। देवगढ़ का किला छिंदवाड़ा से करीब 50 किलोमीटर दूर मोहखेड़ा गाँव के पास स्थित है। बख्त बुलंद शाह के पूर्वजों की कहानी थोड़ी लंबी है और बख्त बुलंद शाह की भी l राजा बख्त बुलंद शाह देवगढ़ के महान गोंड सम्राट राजा जाटवा के वंशज हैं। और बख्त बुलंद शाह का असली नाम महीपत शाह था औरंगजेब ने उन्हें देवगढ़ के राजा बनाने के लिए जबरन इस्लाम धर्म कबूल करवाया था और वे सन 1686 ईस्वी में देवगढ़ के राजा बने और उसके बाद औरंगजेब ने महीपत शाह को नया नाम दिया बख्त बुलंद शाह। बख्त बुलंद शाह देवगढ़ पर कुछ साल तक शासन किये लेकिन वे मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के बाद भी, गोंडी धर्म अपनाया रहा और गोंडों के प्रति अपना स्नेह प्यार त्याग नहीं पाये और मुगलों (मुसलमानों) के खिलाफ बगावत कर दिये। ढंग से मुस्लिम धर्म का पालन न करने से जिसके कारण उन्हे देवगढ़ का शासन छोड़ना पड़ा और चांदागढ़ के गोंड राजा कान सिंह को औरंगजेब ने मुस्लिम बना कर देवगढ़ का राजा बना दिया और देवगढ़ का शासन सौंप दिया और कान सिंह को नया मुस्लिम नाम नेक खान दे दिया।
बख्त बुलंद शाह देवगढ़ छोड़ कर देवगढ़ के दक्षिण में नागपुर शहर बसाया जिसकी स्थापना उन्होंने 1702 ईस्वी में की थी और वहीं अपना राज-पाट करने लगे। बख्त बुलंद शाह ने 12 गांवों को मिलाकर नागपुर नगरी की स्थापना की। इन 12 गांवों मे राजापुर, रायपुर, हिवरी, हरिपुर, वानडे, सक्करदरा, आकरी, लेंडरा, फुटाला, गाडगे, भानखेडा, सीताबर्डी शामिल थे। समय के साथ इनमें से कुछ के नाम बदल गए है। उन्होंने गांवों को मुख्य मार्गों से जोडा, आवश्यकता के अनुसार बाजार बनवाए। इस तरह नागपुर का धीरे-धीरे विकास होता रहा। कहा जाता है कि देवगढ़ में जो शासन औरंगजेब ने नेकनाम खान (कान सिंह) को सौंपा था उसका शासन ज्यादा दिन तक चल नहीं पाया, औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद राजा बख्त बुलंद शाह ने नेकनाम खान को हराकर देवगढ़ को फिर अपने कब्जे में ले लिया था और अपने बेटे चांद सुल्तान को 1709-11 ईस्वी के मध्य देवगढ़ की गद्दी पर बैठा दिया और देवगढ़ और नागपुर में खूब खुशहाली और संपन्नता के साथ शासन करने लगे। गोंडवाना राज्य हुकूमत के बाद नागपुर में भोंसले और पेशवा मराठों का शासन था जिन्होंने गोंडवाना का इतिहास मिटा दिया और उसके बाद अंग्रेजों का शासन हुआ।
जिन दिनों बख्त बुलंद शाह का राज परिवार का साम्राज्य था, तब गोंड राजा के अपने सिक्के हुआ करते थे। आज उनके वंशजो के पास एक भी सिक्का नहीं होगा। वैसे बख्त बुलंद शाह के बनवाये सोने के सिक्के मेरे पास भी नहीं है न उनके बनवाये सिक्के देखा l नागपुर में हिंदी भाषा लाने का श्रेय भी राजा बख्त बुलंद शाह को ही माना जाता है। क्योंकि उस समय गोंडी भाषा बोलते थे। शहर की स्थापना के बाद उन्होंने जो सिक्के बनाए, वे हिंदी में थे। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि नागपुर में हिंदी भाषा का आगमन देवगढ़ से ही हुआ है। राजा बख्त बुलंद शाह उइका की मृत्यु का कोई प्रमाण नहीं है लेकिन उनकी मृत्यु अपने बेटे को देवगढ़ में राजा बनाने के बाद ही हुई है।
सन 1709-12 के आसपास राजा बख्त बुलंद शाह की मुत्यु हो गई। मुत्यु की निश्चित तारीख को लेकर इतिहासकारों मतभेद है। बख्त बुलंद शाह के बाद राजा चांद सुल्तान ने नागपुर और देवगढ़ दोनों जगह पर गद्दी संभाली। चांद सुल्तान ने शहर में आवश्यकता नुसार अनेक वस्तुओं का निर्माण कराया। उन्होंने नगर में पांच महाद्वार बनाये। वर्तमान गांधीसागर बनाम जुम्मा तालाब और महल का प्रसिद्ध गांधी द्वार उन्हीं की देन है। उस समय गांधीसागर तालाब के पानी की आपूर्ति 12 गावों (नागपुर) को की जाती थी। आज तालाब का 25 प्रतिशत हिस्सा ही शेष रह गया है। दुख की बात ये है कि आज के समय में नागपुर को बसाने वाले गोंड राजा का नामोनिशान नहीं है किला भी ध्वस्त कर दिया गया है। और उनके जो आज वंशज हैं उनकी भी कोई इज्जत नहीं है नागपुर शहर में। और तो और भूमाफिया लोग इनकी भी कुछ जमीनें छीन लिए हैं। और विदेशी लोगों का राज गल्ली से दिल्ली तक फैला है।
संकलनकर्ता / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
