"साहित्य का सर्जन" – Yaksh Prashn
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“साहित्य का सर्जन”

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जब अंतर्मन में भावों का भंवर

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उमड़-उमड़ कर आये

जब उमंग- तरंग जहन में

उफन-उफन जाए

तब लेखनी चलती है

उसे साकार रंग में भरती है

तब साहित्य का सर्जन करती है l

सुख-दुःख , अनुराग- मिलन

जब जलती हो विचारों की निर्मम आग

जब सजनी सजती है

लिए प्रिये मिलन की आस 

तब अनायास ही लेखनी चलती है

अक्षरतः उन मनोभाव को 

साहित्य के रूप में रचती है l

माँ की ममता, प्यार दुलार

त्याग समर्पण की बौछार

पिता का तप  कठिन परिश्रम

बच्चो के लिए जीवन का मर्म

रचना उन चित्रों को धारण करती है   

साहित्य के रूप में महक उठती है l  

भूमि जब हरियाली चादर ओढ़े

आसमान इठलाता है

उमड़-उमड़ कर बरसे बदरा

सावन राग सुनाता है

श्याम मन उकसाए लेखनी  

सावन स्वयं साहित्य बन जाता है l

कान्हा की मधुर मुरलियाँ

सुनकर ब्रजवाला झूम उठे

निर्मल प्रेम बरसाता कान्हा

मधुवन में सब नाच उठे

तब लेखनी कान्हा संग झूम उठे

रचे श्रंगार मुरली का

साहित्य ये सब बोल उठे l

कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)