कविता - "लड़कियाँ" – Yaksh Prashn
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कविता – “लड़कियाँ”

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(1)

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आँखों में अरमान लिये कुछ कर जाए

ज्योति सा तेज होगा दीपक सी रोशनी होगी

तुम मुझे कब तक रोकोगे ,

पत्थर पर लिखी इबारत हूँ

तुम शीशे से कब तक तोड़ोगे

हालातो की भट्टी में जब जब झोकोगे

तपकर तब तब सोना बनूंगी

तुम मुझे कब तक रोकोगे ,

पीछे खींचोगे तब मेरे कदम और आगे बढ़ेंगे

जितने काँटे बिछाओगे मैं उतना मजबूत बनूंगीं

तुम मुझे कब तक रोकोगे ।

(2)

आखिर क्यों लड़कियों को कमजोर कहा जाता हैं,

वो जन्म लेती है तब से ही उसे लड़ना पड़ता हैं

घरवालो से लड़ के स्कूल जाती हैं ,

समाज ,रिश्तेदार से लड़ अपना भविष्य बनाती हैं ,

आखिर क्यों लड़कियों को कमजोर कहा जाता हैं ,

पीरियड्स के दर्द से लड़ अपना काम करती हैं ,

सबके ताने सुनकर भी निराश नहीं होती ,

आखिर क्यों लड़कियों को कमजोर कहा जाता हैं,

पराई बताकर उसे बिदा कर दिया जाता ,

फिर भी दस्तूर समझकर चुप रहती

और एक नयी दुनिया बसाती ,

वो नौ महीने चुप चाप दर्द सह कर भी खुश रहती ,

ताकि सब परेशान न हो जाए ,

अन्दाजा नहीं लगा सकते तुम ,

इस कदर दर्द सहन कर

एक नन्ही जान को इस दुनिया में लाती ,

आखिर क्यों लड़कियों को कमजोर कहा जाता हैं,

कुछ बोले तो सोच समझ नहीं हैं कहकर चुप करा देते

सोच तो बड़ी करने की जरूरत तुम्हे है ,

आखिर क्यों लड़कियों को कमजोर कहा जाता हैं ।

(3)

न जाने क्यों ..न जाने क्यों

हमेशा लड़की को ही गलत ठहराया जाता हैं ,

वो कुछ करे तब भी उसे टोका जाता हैं

वो कुछ न करे तब भी उसे टोका जाता हैं

सबको खुश रखे और सबकी बात माने

तो वो अच्छी कहलाती हैं ,

खुद की खुशी के लिए कुछ कहा या किया

तो वो स्वार्थी कही जाती हैं

न जाने क्यों ..न जाने क्यों

हमेशा लड़की को ही गलत ठहराया जाता हैं,

कोई अपमान करे तो हिसाब बराबर किया जाता हैं

वही यदि लड़की खुद के लिए लड़े

तो चरित्र में अँगुली उठाकर चुप करा दिया जाता हैं ,

न जाने क्यों ..न जाने क्यों

हमेशा लड़की को ही गलत ठहराया जाता हैं ,

सबको खुश रख दूसरे की खुशी में खुश रहती

फिर भी ये सवाल उससे क्यों किया जाता हैं

क्या की तुमने आज तक हमारे लिए

वो लड़ाई न हो इसलिए चुप रहती

तो बोलते किया नहीं तो क्या बोलेगी ,

यदि वो सब बताने लग जाए तो

एहसान जता रही बोल के

चुप करा दिया जाता हैं ,

न जाने क्यों …न जाने क्यों

हमेशा एक लड़की को हो गलत ठहराया जाता हैं ।

कवियित्री / लेखिका –
सुश्री दीपाली बंदेवार
सिवनी, (म.प्र.)