कविता - "बेसहारा मासूम बचपन" – Yaksh Prashn
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कविता – “बेसहारा मासूम बचपन”

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तनिक तो सुनलो ये बाबू

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अब भूख नहीं होती काबू

न कोई छत हमारे सर

नंगे-भूखे है खाली कर l

सड़कों पर मलिन गलिन में

कर फैलाये धूप-वारिश में

ये मजबूरी विकट खडी है

उदर भरण की ठेय नहीं है l

कोई धुतकारे कोई है मारे

मजबूरी के हम है सारे

कोई तो सुध लो हे बाबू

अब भूख नहीं होती काबू l

पढ़ने-लिखने का मन करता

पाठशाला को मन तरसता

अच्छा लगता कन्धे बस्ता

ये अरमान नहीं है सस्ता l

तनिक तो सुध लो ये बाबू

सड़को पर नींद नहीं काबू

हम भी है ईश्वर की संतान

हमको भी मिले प्यार दुलार l

15 अगस्त और 26 जनवरी

मानते सब है राष्ट्रिय त्यौहार

हमें भी झंडा है फैराना

हमें भी राष्ट्रगान है गाना l

हमें भी लगाओ कोई क़तर

झण्डे को देना है सर सार

कोई तो सुध लो ये बाबू

मंच पे नाचने को मन बेकाबू  l

कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)