कविता - "झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई" – Yaksh Prashn
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कविता – “झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई”

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दुर्गा रूप में जन्मी थी वो झाँसी की महारानी।।

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आओ तुम्हे बताएं,लक्ष्मीबाई की कहानी।।

सन अठ्ठारह सौ अट्ठाइस और दिन था बुधवार।।

वाराणसी की पावन धरा पर देवी ने लिया अवतार।।

बचपन से ही थी वो वीरता की निशानी।।

आओ तुम्हे बताएं,लक्ष्मीबाई की कहानी।।

मोरोपन्त थे पिता माता थी भागीरथी बाई।

सबकी बहुत लाडली थी प्यारी मनु बाई।।

पेशवा की छबीली का कोई नही था सानी।।

आओ तुम्हें बताएं,लक्ष्मीबाई की कहानी।।

अट्ठारह सौ बयालीस में व्याह हुआ था।।

झाँसी का नवजीवन तबसे शुरू हुआ था।।

गंगाधर की बन गयी थी लक्ष्मीबाई महारानी।।

आओ तुम्हे बताएं,लक्ष्मीबाई की कहानी।।

शादी के बाद जब शस्त्र चलाने लगी।।

अंग्रेजों की अब तो सामत आने लगी।।

झाँसी की आई थी फिर नई जवानी।।

आओ तुम्हें बताएं,लक्ष्मी बाई की कहानी।।

राजा के बाद उन्होंने,सिंहासन संभाला।।

बरछी,कृपाण और थाम लिया भाला।।

फिरंगियों के हाथ न आई थी महारानी।।

आओ तुम्हें बताएं लक्ष्मीबाई की कहानी।।

अठारह सौ अट्ठावन में वीरगति पायी।।

झाँसी की प्रजा में शोक लहर छायी।।

वीरांगना की है ये अमिट कहानी।।

आओ तुम्हें बताएं, लक्ष्मीबाई की कहानी।।

कवियित्री/ लेखिका –
श्रीमति मधु शुभम पांडे
माचीवाड़ा, छिन्दवाड़ा (म प्र)