सजी है राखी बाजारों में
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!नए आकार और नए रंगों में
प्यार से लिपटी डोरियों में
सजी दुकाने टोलियों में ।
चहल बढ़ी अब संगे साथी
रौनक लेकर आई है राखी
कोरोना को मुह चिढ़ाने
लोग आये अब मैदानों में ।
झुण्ड बनाकर सब खड़े है
झुण्ड में देखों सब चलें है
गाँव-शहर और डगर-डगर
कुछ रुके है कुछ पैदल है ।
डरें है कुछ सहम रहे है
भय को देखों भाप रहे है
माथे पर है पड़ी लकीरें
तंग गलियों में जूझ रहे है ।
बाजारों का सुन्दर ठेला
जैसे सबको खींच रहे है
डर का मंजर डर ही जाने
श्या मन अब क्या पहचाने ।
अभी कोरोना नहीं है भागा
हाथ फैलाये ताक रहा है
सावधानी फिर है जरुरी
ये बन जाये न फिर मज़बूरी।
कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
