दुबके पाँव, कोरोना आया
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!बच्चों को है, खूब सताया
बन्द हुआ, हमारा स्कूल
मुरझा गए, बागों के फूल।
बन्द हुई , स्कूल पढ़ाई
टीचर की है, याद सताई
सहपाठी सब, हो गए दूर
घर मे रहने, को मजबूर ।
नन्ही गुड़िया, समझ न पाये
अब वो क्यो, स्कूल न जाये
घर मे हो गए, बच्चे बोर
थम गया, बच्चों का शोर।।
शुरू हुई ,ऑनलाइन पढ़ाई
कुछ समझे, कुछ समझ न आई
पुस्तक-कापी, हो हुई दूर
मोबाइल से, पढ़ने को मजबूर।
गर स्कूल, शुरू हो जाते
कितने मजे, हमे है आते
दोस्तों के साथ मिलकर
स्कूल में है, धूम मचाते।
कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
