पड़ा खाट पर बूढ़ा बाबा
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!करा रहा है दे आवाज
लगी भूख उदर जल रहा
भोज अग्नि से कोई सींच
बना कलेवा बाबा का
ग्रहलक्ष्मी ले आई थाल
पकवान देखकर मुस्काया
कैसे खाए नहीं थे दांत ।
मन रोया और तन थर्राया
बूढ़ी अवस्था की है भान
जब युवा था तब तो मैंने
खूब चखे थे इनके स्वाद
नित्य सेवा में जागे सुत
बूढ़ा बरगद को टेक लगाए
इसकी छाया में निर्मम
शीतलता है सबको भायें ।
मन तृप्त था सेवा से अब
देता था सुत-बहू को आशीष
विपदा न कभी आन पड़े
नहीं झुकेगा तेरा शीश
भानू का प्रकाश चीरकर
एक पल में आया अंधकार
यमलोक के बुलावा से
नहीं करे कोई इंकार ।
बूढ़ा बरगद उखड़ गया अब
शीतल छाया मुरझाई
इस पेड़ जाने से सारी
धरती पर थर्राराई
उठा सिर का साया उस दिन
जिसने थमा था हरदम हाथ
कोई ना ले पाया जगह वो
जिसने दिया जीवन भर साथ ।
यू कैसे भूल जाए इनको
समर्पित सारा जीवन था
हर खुशी में पीछे रहते
दुख में हरदम आगे था
आज उन्हीं का श्राद्ध मनाते
पितृलोक से इन्हें बुलाते
श्रद्धा है इनके आन की
इनसे मिली पहचान चाम की ।
कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
#ShyamKumarKolare
