कविता- "समझें वृद्धों के जस्बात" – Yaksh Prashn
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कविता- “समझें वृद्धों के जस्बात”

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ओझल मन अकेलापन, झुर्रियों से सना शरीर

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आंख धंसी, धुंधलापन बहरापन कमजोर दांत

नींद नहीं आंखों में करवट से बीतती है रात

एक बोझिल सा चेहरा झिलमिलाती सी आंख ।

टिमटिमाती आशाएं अपनों से बहुत से अरमान

बस कभी-कभी हल्की सी मुस्कान

थोड़ी सी खुशियों में डूबने का अरमान

जीवन भर बने अपनों के बने सहारा

उम्र का पड़ाव, जब लगे अपनों का सहारा।

बस थोड़ी सी इनकी दबी आरजू

मन करे उड़ने का, पर शरीर है मजबूर

ओझल होते वक्त के सब अरमान यहाँ

सब है घर पर अपने, रह रहे सब संगे साथ

पर अकेलापन, गुमसुम सुनसान चहल

उम्र के साथ बिरान होते सपनो के महल।

सब कहते हैं बड़े बुजुर्ग हमारी शान है

माता की ममता में शीतल भरा अरमान है

मनुष्य का मनुष्य से रिश्ता बड़ा पक्का है

पर वक्त इनके लिए चलता सिक्का है।

बड़े-बूढ़ों की सेवा से मिलता बड़ा पुण्य

सब जानते हैं यह बात बड़ी है ख़ास  

पर क्यों गुम हो जाते हैं सबके जस्बात

गर सब अपने बड़ों का मान करें

घर में सब अपनों का सम्मान करें।

ना पड़े वृद्धाश्रम की जरूरत कभी

ना होगा बाबा कोई अपनों से बेघर कभी

न टूटेगा कोई माई के अपनों से आरमान।  

जब कद्र करंगे हम सब अपने अतीत की

हम भी कभी एक अतीत हो जाएंगे

इनके जस्बात और अरमान पे खरे उतरे

यकीनन इसी धरती देवरूप में इन्हें पाओगे।

कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
#ShyamKumarKolare