कविता- "सुकून" – Yaksh Prashn – Shyam Kumar Kolare
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कविता- “सुकून”

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भले ही हो आपके पास खूब सुविधाएँ

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पर जिंदगी में सही सुकून कहाँ से लाएँ।

धन-दौलत आराम का समान देता है

पर सुकून तो अपने मन मे ही होता है।

जरूरत पर हर चीज बड़ी सुहाती है

भूख में सुखी रोटी लजीज हो जाती है।

आराम गरीबों की खटिया में भी होता है

संतुष्टि की तकिया भी खूब सुकून देता है।

असंतुष्ट के लिए हर सामान बेकार है

बड़ा महल भी इनका कुटिया समान है।

नींद के लिए बिस्तर नही थकान चाहिए

अपनो के लिए दिल मे अरमान चाहिए।

तारीफ के काबिल हर शख्स होता है यहाँ

बस उसकी कद्र के लिए कद्रदान चाहिए।

बेसहारा लोग सोते है जमीन पर अक्सर

लेकिन कभी नींद के मोहताज नही होते है।

आराम तो मिट्टी भी देती है उन्हें भरपूर

जो कभी बरबस नही, थकान से सोते है।

दुःख का कारण अपेक्षा बनती है यहाँ

अपेक्षा पूरी न हो तो फासले हो जाते है।

इससे छोटे से बड़े  मसले बन जाते है

अपेक्षा से कईयों के दिल मे दरार आते है।

सुकून गर पाना हो श्याम यहाँ मन में

जिन्दगी में हँसी गुलजार चाहिए होती है।

जो नही मुस्काए एक बार भी खुलके यहाँ

उसकी दुनिया बड़ी बदनसीब होते है।

कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
#ShyamKumarKolare