उम्मीदों का दिया चीरता अंधयारी को
नन्हा नही ये छिपा रखा है चिंगारी को
मन मे दहकते लपटों की गर्मियाँ को
पहचान कर देखों इनकी नर्मियों को।
उड़ना नही आसां यहां पंखो के बिना
अगर सोच लो तुम आसमान को छूना
हौसलों के पंख कर मज़बूत इतना
सहारे इसके छू ले धरा से आसमा।
कायरो की कहीं कोई पहचान नही होती
मेहनत की नींद कभी भूखी नही सोती
हर बाजुओं में ताकत है बेसुमार होती
कभी खुदको खुदकी पहचान नही होती।
बुलंदी छूना इतना आसां भी नही यारो
मेहनत के पसीने से सींचना पड़ता है
बगैर सोचे कोई पैर भी नही उठता है
सफलता ये लिए खूब तपना पड़ता है।
जो मेहनत की सीडी से ऊपर चढ़े
लगन से मंजिल उसे मिल जाएगी
परिश्रम से पीछे न हटो कभी भी
मेहनत से ही मंजिल करीब आएगी।
कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
#ShyamKumarKolare

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