भारतीय जनता पार्टी (BJP) स्थापना दिवस: विचारधारा से राजनीतिक प्रभुत्व तक का सफर – Yaksh Prashn
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भारतीय जनता पार्टी (BJP) स्थापना दिवस: विचारधारा से राजनीतिक प्रभुत्व तक का सफर

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भाजपा स्थापना दिवस : 6 अप्रैल

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का स्थापना दिवस (6 अप्रैल) भारतीय राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

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1980 में स्थापित यह दल आज देश की सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति बन चुका है, जिसने राष्ट्रीय नीतियों, सांस्कृतिक विमर्श और शासन प्रणाली को गहराई से प्रभावित किया है।

यह लेख भाजपा के इतिहास, विचारधारा, चुनावी उपलब्धियों, शासन मॉडल और चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए इसके राष्ट्रीय प्रभाव को समझने का प्रयास करता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और गठन

भाजपा की जड़ें भारतीय जनसंघ (BJS) में हैं, जिसकी स्थापना 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी। जनसंघ ने हिंदू राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान को अपना आदर्श बनाया।

1975-77 के आपातकाल के बाद, जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने जनता पार्टी में शामिल होकर कांग्रेस को हराया।

लेकिन RSS सदस्यता को लेकर मतभेदों के कारण 1980 में जनता पार्टी टूट गई। 6 अप्रैल 1980 को वाजपेयी, आडवाणी और अन्य नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी, जो “गांधीवादी समाजवाद” और “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” के सिद्धांतों पर आधारित थी।

वैचारिक आधार

भाजपा की विचारधारा हिंदुत्व और अखंड मानववाद पर टिकी है। विनायक दामोदर सावरकर द्वारा प्रतिपादित हिंदुत्व भारत को हिंदू सांस्कृतिक पहचान के रूप में परिभाषित करता है।

वहीं, पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अखंड मानववाद ने पार्टी को एक ऐसी दृष्टि दी, जो आर्थिक विकेंद्रीकरण और सामाजिक न्याय पर जोर देती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भाजपा का वैचारिक मार्गदर्शक रहा है, जिसके संगठनात्मक ढाँचे और कार्यकर्ता संस्कृति ने पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूती प्रदान की।

प्रारंभिक संघर्ष और चुनावी यात्रा

1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को महज 2 सीटें मिलीं। लेकिन 1989 में राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी के भाग्य को बदल दिया।

लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा (1990) ने हिंदू समाज को एकजुट किया, और 1991 के चुनाव में पार्टी ने 120 सीटें जीतीं।

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस ने देश को झकझोर दिया, लेकिन इस घटना ने भाजपा को हिंदू बहुसंख्यक वर्ग का “रक्षक” बना दिया।

राम मंदिर आंदोलन

राम मंदिर आंदोलन भाजपा के लिए राजनीतिक सफलता की कुंजी बना। इसने पार्टी को शहरी मध्यवर्ग से आगे बढ़ाकर OBC और ग्रामीण मतदाताओं तक पहुँचाया।

1996 के चुनाव में भाजपा 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। हालाँकि, गठबंधन की कमजोरी के कारण 13 दिन में सरकार गिर गई।

NDA सरकार और BJP युग

1998 में भाजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) बनाकर 182 सीटें जीतीं। वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने पोखरण-2 परमाणु परीक्षण (1998) कर दुनिया को चौंका दिया।

1999 के कारगिल युद्ध में जीत और स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी योजनाओं ने भाजपा को “विकासवादी पार्टी” का टैग दिया। 2004 में हार के बावजूद, इस दौर ने भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया।

मोदी युग: भाजपा का अभूतपूर्व प्रभुत्व

2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने “सबका साथ, सबका विकास” के नारे पर 282 सीटें जीतकर इतिहास रचा।

मोदी सरकार ने जन धन योजना, स्वच्छ भारत अभियान, और गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) जैसे सुधारों को प्राथमिकता दी।

2019 में पुनः 303 सीटें जीतकर भाजपा ने अपनी जनाधार को मजबूत किया।

अनुच्छेद 370 का निरसन, CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम), और राम मंदिर निर्माण जैसे फैसलों ने पार्टी को हिंदू राष्ट्रवाद का प्रतीक बना दिया।

संगठनात्मक शक्ति और RSS का योगदान

भाजपा की ताकत उसके संगठनात्मक ढाँचे में निहित है, जो RSS के शाखा नेटवर्क पर आधारित है।

पार्टी का नेतृत्व (राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर बूथ स्तर के कार्यकर्ता) संघ के अनुशासन और समर्पण से प्रेरित है। यही कारण है कि चुनावों और सामाजिक आंदोलनों में भाजपा तेजी से जनसमर्थन जुटा पाती है।

प्रमुख नीतियाँ और शासन

  1. आर्थिक सुधार: जीएसटी, मेक इन इंडिया, और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने अर्थव्यवस्था को गति दी।
  2. सामाजिक पहल: उज्ज्वला योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, और आयुष्मान भारत ने गरीबों तक पहुँच बनाई।
  3. विदेश नीति: “नेइबरहुड फर्स्ट” और अमेरिका, इजराइल के साथ मजबूत संबंधों ने भारत की वैश्विक छवि बदली।

भाजपा ने अपने 45 वर्षों के सफर में साबित किया है कि विचारधारा और जनसमर्थन का मेल राजनीति में क्रांति ला सकता है।

आज यह पार्टी एकछत्र राजनीतिक शक्ति बन चुकी है, लेकिन समावेशी विकास और सामाजिक सद्भाव की चुनौतियाँ अभी बाकी हैं।

भाजपा स्थापना दिवस न केवल एक उत्सव है, बल्कि भारत के लोकतंत्र और राष्ट्रवाद के भविष्य पर विमर्श का अवसर भी।