कोवैक्सिन वालों की विदेश यात्रा अधर में:WHO और US के बाद यूरोपीय देशों में भी कोवैक्सिन को मंजूरी नहीं; फेज-3 ट्रायल में 77.8% एफिकेसी, अब क्या होगा इसका भविष्य – Yaksh Prashn
Home » कोवैक्सिन वालों की विदेश यात्रा अधर में:WHO और US के बाद यूरोपीय देशों में भी कोवैक्सिन को मंजूरी नहीं; फेज-3 ट्रायल में 77.8% एफिकेसी, अब क्या होगा इसका भविष्य

कोवैक्सिन वालों की विदेश यात्रा अधर में:WHO और US के बाद यूरोपीय देशों में भी कोवैक्सिन को मंजूरी नहीं; फेज-3 ट्रायल में 77.8% एफिकेसी, अब क्या होगा इसका भविष्य

Share

यूरोपियन यूनियन के देशों ने अपने यहां यात्रा करने के लिए एक ग्रीन पास की शुरुआत की है। ग्रीन पास यानी एक ऐसा डिजिटल सर्टिफिकेट, जो इन देशों में बिना किसी प्रतिबंध के यात्रा करने की अनुमति देता है। शुरुआत में ये पास सिर्फ ऐसे लोगों को देने की घोषणा की गई थी, जो मॉडर्ना, फाइजर-बॉयोएनटेक, जॉनसन एंड जॉनसन और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगवा चुके हैं।

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

इसमें भारत की कोई वैक्सीन न शामिल किए जाने पर सरकार ने नाराजगी जताई। सरकार ने कहा कि अगर ग्रीन पास में भारत की वैक्सीन को शामिल नहीं किया गया, तो यूरोपीय देशों से आ रहे लोगों को भी मैंडेटरी क्वारैंटाइन करना पड़ेगा। इसके बाद यूरोपियन यूनियन के 9 देशों ने अपने यहां कोवीशील्ड को मंजूरी दे दी, लेकिन कोवैक्सिन को अभी भी दरकिनार कर दिया।

कोवैक्सिन भारत बायोटेक द्वारा तैयार की गई पहली देसी वैक्सीन है। इसका सफर शुरुआत से ही आसान नहीं रहा है। पहले इसके तीसरे ट्रॉयल के नतीजे आने से पहले इस्तेमाल की मंजूरी पर सवाल उठाए गए। इसके बाद इसमें बछड़े के सीरम के इस्तेमाल पर हंगामा हुआ। पिछले हफ्ते ब्राजील ने 2 करोड़ कोवैक्सिन की खरीद के ऑर्डर पर रोक लगा दी।

WHO ने अभी इस देसी वैक्सीन को मान्यता नहीं दी है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। अब यूरोपियन यूनियन के देशों ने भी अपने ग्रीन पास में कोवैक्सिन को शामिल नहीं किया। इससे भारत के वैक्सीनेशन ड्राइव में कोवैक्सिन लगवा चुके हजारों लोगों की विदेश यात्रा अधर में लटक गई है।

WHO ने कोवैक्सिन को अप्रूवल क्यों नहीं दिया
विश्व स्वास्थ्य संगठन में किसी वैक्सीन को चार स्टेप में अप्रूवल मिलता है। पहले चरण में वैक्सीन निर्माता WHO को आवेदन देता है। दूसरे चरण में वैक्सीन निर्माता और WHO के बीच मीटिंग होती है। तीसरे चरण में रिव्यू करने के लिए WHO फाइल स्वीकार करता है। चौथे और आखिरी चरण में एसेसमेंट के बाद मंजूरी मिल जाती है।

भारत बायोटेक की कोवैक्सिन के मामले में अभी पहला ही स्टेप पूरा नहीं हुआ है। कंपनी ने 19 अप्रैल को आवेदन जमा किया था, लेकिन WHO ने अपनी स्टेटस रिपोर्ट में लिखा है कि इसके लिए अभी ज्यादा जानकारी की जरूरत है। गौरतलब है कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवीशील्ड वैक्सीन ने ये चारों स्टेप 15 फरवरी को पूरे कर लिए थे और इसे WHO की मंजूरी मिल चुकी है।

अमेरिका में भी कोवैक्सिन के इस्तेमाल से इनकार
अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने भी कोवैक्सिन को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। FDA का कहना है कि कोवैक्सिन को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी देने के लिए अभी पर्याप्त डेटा नहीं है। भारत बायोटेक की अमेरिकी पार्टनर ऑक्यूजेन ने कहा कि अब वो कोवैक्सिन के फुल अप्रूवल के लिए कोशिश करेंगे।

कोवैक्सिन की शुरुआत से ही जुड़ा है विवाद
इस साल जनवरी में कोवैक्सिन को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिलने के साथ ही विवाद शुरू हो गया था। एक्सपर्ट्स का कहना था कि अभी ट्रायल से गुजर रही किसी वैक्सीन को करोड़ों लोगों को लगाने की मंजूरी कैसे दे दी गई। हालांकि भारत बायोटेक और ड्रग रेगुलेटर दोनों ने इसका बचाव करते हुए कहा कि यह सुरक्षित है और इससे मजबूत इम्यून सिस्टम विकसित होता है।

भारत बायोटेक ने कहा कि दूसरे चरण के ट्रायल के अच्छे नतीजे मिलने के बाद ही इसके इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दी गई है। 3 जुलाई को कंपनी ने तीसरे चरण के ट्रायल का डेटा सार्वजनिक कर दिया है। देश के 25 अस्पतालों में 25,800 वॉलंटियर पर कोवैक्सिन का ट्रायल किया गया। कंपनी ने कहा कि कोविड के खिलाफ 77.8% एफिकेसी है। ये कोवीशील्ड से भी ज्यादा है, जिसकी एफिकेसी 70.4% थी।

कोवैक्सिन की खरीद पर ब्राजील में विवाद
कोवैक्सिन के WHO में अप्रूवल की प्रक्रिया भले ही धीमी हो, लेकिन कंपनी वैक्सीन का ग्लोबल विस्तार करने की कोशिश कर रही है। ब्राजील के साथ दुनिया का पहला ग्लोबल एक्सपोर्ट होना था। लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते ये करार रद्द कर दिया गया। 2 करोड़ डोज का ये सौदा 2,414 करोड़ रुपए में तय हुआ था। कंपनी ने ब्राजील के लिए 1,115 रुपए प्रति डोज कीमत निर्धारित की थी।

ब्राजील में इसकी जांच की जाएगी कि फाइजर जैसी सस्ती वैक्सीन की बजाए कोवैक्सिन क्यों खरीदी गई जिसे WHO से भी अभी मंजूरी नहीं मिली है। भारत बायोटेक ने कहा, ‘हमने समझौते, नियामक मंजूरियों और आपूर्ति के लिए ब्राजील में उन्हीं नियमों का पालन किया जिनका दुनिया के अन्य देशों में किया गया है। इसके साथ ही ब्राजील सरकार की ओर से हमें अभी तक कोई एडवांस भुगतान नहीं हुआ है।’

सरकार का स्टैंड और कोवैक्सिन का भविष्य
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि कोवैक्सिन लगवा चुके लोगों पर यात्रा प्रतिबंध लगाना निराधार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ऐसी कोई रोक नहीं लगाई है। उन्होंने कहा कि आज की तारीख में कोवैक्सिन सबसे प्रभावी वैक्सीन है।

3 जुलाई को कोवैक्सिन ने अपने फेज-3 ट्रायल के आंकड़े जारी कर दिए हैं। इसकी एफिकेसी दुनिया की कई वैक्सीन से बेहतर साबित हुई है। भारत बायोटेक ने कहा है कि अब वो फेज-4 के ट्रायल शुरू किए जाएंगे और साथ ही साथ भारत में पूर्ण लाइसेंस के लिए भी आवेदन करेंगे। फेज-3 ट्रायल का डेटा सार्वजनिक किया जाना इसलिए भी जरूरी था, क्योंकि इसी के आधार पर WHO से कोवैक्सिन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिलेगी।

मायो क्लिनिक के प्रोफेसर विंसेंट राजकुमार ने कहा, ‘फेज-3 ट्रायल के नतीजों ने भरोसा दिया है कि कोरोना को रोकने में कोवैक्सिन एक बेहतरीन विकल्प है।’ नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के डायरेक्टर प्रिया अब्राहम के मुताबिक ये वैक्सीन अल्फा, बीटा, जीटा, कप्पा और डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ भी कारगर साबित हुई है। ये वैक्सीन पूरी तरह भारत में बनी है इसलिए हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।