भारतीय दंड संहिता के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता
भारत- भारतीय विधि आयोग ने अपनी विभिन्न रिपोर्टों में आपराधिक कानूनों की अलग-अलग धाराओं में संशोधन करने की सिफारिश की।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!इसके अलावा, बेजबरुआ समिति, विश्वनाथन समिति, मलिमथ समिति और माधव मेनन समिति ने भी आपराधिक कानूनों में विशेष संशोधन और आपराधिक न्याय प्रणाली में सामान्य सुधारों की अनुशंसा की है।
संसदीय स्थायी समिति की भूमिका-
गृह संबंधी मामलों पर संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 111वीं रिपोर्ट (2005), 128वीं रिपोर्ट (2006) और 146वीं रिपोर्ट (2010) में अनुशंसा की कि अधिनियमों में टुकड़ों-टुकड़ों में संशोधन करने के बजाय संसद को व्यापक कानून पेश करके देश की आपराधिक न्याय प्रणाली की समीक्षा करनी चाहिए।
गृह मंत्रालय की पहल-
गृह मंत्रालय ने सभी को सुलभ और किफायती न्याय प्रदान करने तथा नागरिक केंद्रित कानूनी संरचना बनाने के उद्देश्य से आपराधिक कानूनों की व्यापक समीक्षा की। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- भारतीय दंड संहिता, 1860।
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872।
इन कानूनों को निरस्त कर दिया गया और उनकी जगह तीन नए कानून लागू किए गए:
- भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए), 2023।
महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध पर विशेष ध्यान-
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को प्राथमिकता देते हुए उन्हें एक अध्याय में रखा गया है। इसमें निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं:
- महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के लिए कठोर सजा, जैसे मृत्युदंड।
- 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म के दोषी को उसकी शेष प्राकृतिक आयु या मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा।
- शादी, नौकरी, पदोन्नति या पहचान छिपाकर यौन संबंध बनाने जैसे अपराध को पहली बार परिभाषित किया गया।
महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रावधान-
- बीएनएस के नए अध्याय-V में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों को अन्य सभी अपराधों पर प्राथमिकता दी गई है।
- बीएनएस में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध विभिन्न अपराधों को लिंग-तटस्थ बना दिया गया है, तथा लिंग के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी पीड़ितों और अपराधियों को इसमें शामिल किया गया है।
- बीएनएस में सामूहिक दुष्कर्म की नाबालिग पीड़िताओं के लिए उम्र का अंतर खत्म कर दिया गया है। पहले 16 साल और 12 साल से कम उम्र की लड़की से सामूहिक दुष्कर्म के लिए अलग-अलग सजाएं तय थीं। इस प्रावधान में बदलाव किया गया है और अब अठारह साल से कम उम्र की लड़की से सामूहिक दुष्कर्म के लिए आजीवन कारावास या मौत की सजा का प्रावधान है।
- महिलाओं को परिवार के वयस्क सदस्य के रूप में मान्यता दी गई है जो सम्मन प्राप्त करने वाले व्यक्ति की ओर से सम्मन प्राप्त कर सकती हैं। पहले ‘कुछ वयस्क पुरुष सदस्य’ के संदर्भ को ‘कुछ वयस्क सदस्य’ से बदल दिया गया है।
- पीड़िता को अधिक सुरक्षा प्रदान करने तथा दुष्कर्म के अपराध से संबंधित जांच में पारदर्शिता लागू करने के लिए, पुलिस द्वारा पीड़िता का बयान ऑडियो-वीडियो माध्यम से दर्ज किया जाएगा।
- महिलाओं के विरुद्ध कुछ अपराधों के लिए, जहां तक संभव हो, पीड़िता का बयान एक महिला मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाना चाहिए तथा उसकी अनुपस्थिति में एक पुरुष मजिस्ट्रेट द्वारा महिला की उपस्थिति में बयान दर्ज किया जाना चाहिए, ताकि संवेदनशीलता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके तथा पीड़ितों के लिए एक सहायक वातावरण का सृजन किया जा सके।
- चिकित्सकों को दुष्कर्म की पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट 7 दिनों के भीतर जांच अधिकारी को भेजने का निर्देश दिया गया है।
- इसमें प्रावधान है कि पंद्रह वर्ष से कम आयु के या 60 वर्ष (65 वर्ष से पहले) से अधिक आयु के किसी पुरुष व्यक्ति या महिला या मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति या गंभीर बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को उस स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी, जहां वह पुरुष व्यक्ति या महिला रहता है। ऐसे मामलों में जहां ऐसा व्यक्ति पुलिस स्टेशन में उपस्थित होने के लिए इच्छुक है, उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी जा सकती है।
- नए कानून में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध के पीड़ितों को सभी अस्पतालों में मुफ्त प्राथमिक उपचार या चिकित्सा उपचार का प्रावधान है। यह प्रावधान चुनौतीपूर्ण समय के दौरान पीड़ितों की भलाई और उनके स्वस्थ होने की स्थिति को प्राथमिकता देते हुए आवश्यक चिकित्सा देखभाल तक तत्काल पहुंच सुनिश्चित करता है।