Seoni (यक्ष-प्रश्न Seoni) 7 मई 2025– सारांश-
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!- भगवान की शरणागति होने पर परम सुख प्राप्त होता है।
- विष्णु की माया से भगवान शंकर, ब्रह्मा एवं नारद भी भ्रमित हो जाते हैं।
- संत और ग्रंथ ही माया से निवृत्ति दिला सकते है।
- भजन आराधना विहीन मनुष्य पशु तुल्य है ।
- नवधा भक्ति से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
Seoni : मुंगवानी खुर्द श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव तृतीय दिवस (6 मई) प्रसंग
उक्ताश्य के प्रेरक उदगार, ग्राम मुंगवानी खुर्द के प्रतिष्ठित तिवारी परिवार द्वारा आयोजित, सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव के तृतीय दिवस पर कथा व्यास पंडित दिव्यांशु जी महाराज के मुखारविंद से नि:सृत हुए।
कलयुग के प्रारंभ काल में, चक्रवर्ती राजा परीक्षित को तक्षक नागदंश से मृत्यु होने का ऋषि श्राप मिला था। राजा परीक्षित को मोक्ष प्रदान करने हेतु, स्थितप्रज्ञ परमहंस शुकदेव जी महाराज ने उन्हें साप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत अमर कथा का उपदेश सुनाया।
मृत्यु के भय को दूर करने का उपाय पूछने पर सुखदेव जी महाराज ने सारे संसार के कल्याण हेतु, उपायो का विस्तृत वर्णन किया।
कथा व्यास पंडित दिव्यांशु जी महाराज ने इन उपाय को सहज सरल भाषा में समझाते हुए कहा कि, भगवान शरणागत को अभय प्रदान करते हैं। भगवान का स्मरण और आराधना करने पर कामी और अकामी सभी मनुष्यों को अभय का वरदान प्राप्त होता है।
आप श्री ने कहा कि भजन आराधना विहीन मनुष्य जीवन पशु तुल्य है। मनुष्य जन्म दुर्लभ है, मनुष्य शरीर मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।
राजा परीक्षित ने सुखदेव जी महाराज से पूछा कि सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई? भगवान विष्णु से उत्पन्न समस्त सृष्टि के रचना क्रम का विस्तार से वर्णन करते हुए, सुखदेव जी महाराज ने विष्णु की अद्भुत और कठिन माया का उल्लेख किया।
आप श्री ने कहा कि, संत और ग्रंथ ही मायापति की कठिन माया से निवृत्ति दिला सकते हैं। कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कथा व्यास दिव्यांशु जी ने, महात्मा विदुर, धर्मराज युधिष्ठिर, धर्मात्मा विभीषण के महान व्यक्तित्व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए, कहा कि ,हमें कठिन से कठिन परिस्थिति में भी धर्म पालन से विमुख नहीं होना चाहिए।
आगे की कथा में सृष्टि के विस्तार क्रम में मनु और शतरूपा, दिति और अदिति से संतान क्रम का वर्णन करते हुए बैकुंठ में भगवान विष्णु के पार्षद जय और विजय को सनकादिकमुनि के श्राप से हिरणाक्ष और हिरण्यकश्यपु की उत्पत्ति तथा बाराह अवतार की कथा का वर्णन करते हुए आपश्री ने कहा कि, संत का क्रोध विवेकजन्य होता है । उनके श्राप में भी संसार के कल्याण का भाव रहता है।
कथा प्रसंग के तृतीय दिवस पर आयोजक तिवारी परिवार के स्नेही स्वजनों के साथ ही, आसपास के गांव से सैकंडो सुधि श्रोताओं में, अवनीद्र तिवारी, देवेंद्र मिश्रा हथनापुर, श्रीरामचरण सनोडिया, श्रीमती आशा देवी सनोडिया, अनिल उपाध्याय, संदीप मिश्रा सुनवारा, बबलू तिवारी खैरी, पंडित हरिकुमार अवस्थी लखनादौन, शंभू प्रसाद दुबे देवरी कला, लोकेश शुक्ला पायली, दुलीचंद मिश्रा, हरी प्रसाद मिश्रा सिंघोडी, शिवदयाल पटेल, मंगलू साहू, शिवप्रसाद शिवनाथ दलबीर एवं रघुवीर साहू मंगवानी खुर्द, रविशंकर मिश्रा कोरबा, मुकेश पाठक ,राजेश पाठक, ,हथनापुर , कपिल तिवारी सिवनी, भीकम सनोडिया, नेतराम, ददुआ सनोडिया तथा बड़ी संख्या में माता बहनों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
आगामी 11 मई तक प्रतिदिन दोपहर 2:30 बजे से शाम 6:00 बजे तक चल रही दिव्य भागवत कथा ज्ञानयज्ञ में आप समस्त श्रद्धालुजनों से कथा श्रवण का पुण्य लाभ अर्जित करने का विनम्र आग्रह है।
संकलन - पं.ओमप्रकाश तिवारी (पूर्व अध्यक्ष)
जिला ब्राह्मण समाज सिवनी
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