"मेरे घर की बगिया" – Yaksh Prashn
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“मेरे घर की बगिया”

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आँगन में है छोटी बगिया,

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फूल लगे है सुन्दर सुन्दर,

महके जब खुसबू इनकी,

मुग्ध हुआ ये सारा घर,

रंग बिरंगे पुष्प खिले है,

कुछ कुशुम मुस्काती,

तितली का बाजार लगे,

जब फूलो पर मडराती l

मोगरा केवड़ा चम्पा चमेली,

गुलाब फुले है हँसती लिली,

मेरी आहाट से दूब हँसें,

तो झुइमुई है सरमाती

लता लगी है चुम्बन लेने,

तरु चढ़ी लपटाती,

मधु पराग महक उठे है,

गुंजित खग के गाने

रातरानी रात में खिलती

सब का मन भरमाने l

साग सब्जी भी देती खूब

फल-फूलो से लदे तरु

जाम जामुन ईख केला खायें

बेर इमली मुह पानी लाये

घर की बगिया सबकी प्यारी

जीवन की साथी है न्यारी l

कवि / लेखक –

श्याम कुमार कोलारे

सामाजिक कार्यकर्ता

चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)