कविता – मिट्टी का नन्हा दीपक

एक नन्हा सा दीपक मिट्टी का, रखे सदा समर्पण भाव   अंत समय तक जलता रहता, लगा देता है जीवन दाव मिट्टी का दिया बोला हवा से, बहुत ताकत है तेरे अन्दर हम दोनों गर मिल जाये, जहान बनादे स्वर्ग सा सुन्दर।   मैं दीपक देता मंद प्रकास हूँ , हवा देती सबको प्राण  …

कविता : सुरसा बनी महँगाई

महँगाई फलफूल रही  जकड़ रही है देश को नए- नए रूप में आकर बदल रही है वेश को हर जगह महँगाई की मार तोड़ रही कमर को खाने को सोचने लगे है महँगा हुआ राशन जो। किसान को तो खाद के मांदे आधी हुई कमाई हर चीज की दुनी कीमत सुरसा बनी महँगाई मिट्टी भी…

कविता – “आंखों का नूर”

पथराई अखियन से देखे नूर कहीं जैसा चला गया आस भरी निगाहों से ये प्रीत ममता का वह गया। कलेजे का टुकड़ा बिछडा बहुत दिन गए हैं बीत याद बसायें मन में सारी दिल में उमड़ रही है मीत। कही दूर बसाकर अपना देश प्रीत ने बनाया अलग सा वेश चमक भरी गलियाँ भुला गई…

कविता: “पैसा की खनक”

पैसा की खनक मानो किस्मत चमक जाती है पावन खुशबू से इसके फिजायें महक जाती है धन-वैभव सुख-समृद्धि की ठाव बन जाती है मान प्रतिष्ठा के संग जीवन शक्ति में  लाती है। पैसा जिसके पास उसी के पास पैसा आता है पैसा मानो चुम्बक है  पैसा खीच कर लाता है पैसा नही भगवान ये गजब…

कविता – “लिवाज”

लिवाजो की चमक-दमक, इसमे सब शान ढूंढ़ते है कीमती लिवाजो में अक्सर, खुद की पहचान ढूढ़ते है। इंसान लिवाज से नही, क़ाबलियत से जाना जाता है हुनर ज्ञान ही उसे खुद की, सही पहचान दिलाता है। बेजान मूर्ति को दुकानों पर, सजे अक्सर देखा होगा लिवाज उन मूरतों में केवल, चकाचौंध लाता होगा।   साधारण…

“एक ऐसा भी करवा चौथ”

साहित्य- सुबह जल्दी उठकर पुष्पा अपने दैनिक काम में लग गई । आज सोचा था कि दोपहर के पहले सब काम निपटकर थोड़ी देर आराम करेगी। दिनभर निर्जला निराहार व्रत जो रखना है उसे आज। हाँ! पिछले आठ साल हो गए है उसे यह व्रत करते हुए । आज सुहागिन महिलाओं का बड़ा कठिन लेकिन…

“आस भरी निगाहें”

चौराहों फुटपाथों पर आम जरुरत की सजी दुकाने तीज त्यौहार या मढ़ई मेला,मोहल्ला का कोई ठेला   पेट पालने बच्चों का धूप जाड़ा में भी खड़ा रहता अपनी परवाह न करके दूसरो के लिए तत्पर्य रहता ।   कम लागत की ये दुकाने, स्वाभिमान से चलती है घर जाकर देखो इनके, दिहाड़ी से भट्टी जलती…

कविता : चुभता शूल

कहीं धुँआ तो कहीं जहर है हर तरफ देखो मचा कहर है सब अनजाने ये कैसा शहर है भीड़ बड़ी पर अकेला पहर है। मची रही हर तरफ लूटम लूट है इसकी मानो मिली खुली छूट है सस्ती हुई महँगी ये चर्चा आम है दूध में मिले पानी सरल काम है। लूट की देखो ये…

कविता : मैं भी रखूँगा एक उपवास

मैं भी रखूँगा एक उपवास, होटो पर हो सदा मुस्कान हे! आसमान के उजले चाँद ,नही तू मेरे चाँद सा सुन्दर  नित्य आता है नित्य जाता है, दमकने की तू करे चेष्टा  तुझसे ज्यादा रोशन मुखड़ा,दिखता मेरे चाँद के अन्दर। मैं भी रखूँगा एक उपवास, लम्बी उम्र हो मेरे चाँद की  कभी घटता न कभी…

कविता – “तरुवर”

“ऊंचे ऊंचे पेड़ देखो गगन को झू रहे हरि-हरि पत्तियों में मंद मुस्कान है सीना ताने एक एकजुट होकर ये तरु लक्ष्य के भेदन को देखे आसमान है।। इत तित देखन में मनोहर लगत है झुमें ये कलाओं से लगे कलाबाज है सावन की रिमझिम बूंद पड़ी तन में भीगते नहाए हुए लगे चमकदार है।।…