“इंसानियत”

किसी अंजान की निःस्वार्थ मदद करना और उससे कुछ भी न चाहना, इंसानियत होती है । दुःख तकलीफ जिल्म परेशानी देना शैतानो का काम होता है देना हो तो हिम्मत दो जस्बा दो मदद दो, सहायता दो ! इससे इंसानियत दिखती है मर्द औरत को आदेश देता है अधिकारी कर्मचारिओं को मालिक मजदूर को आदेश…

“शुरू हुई फिर से पढ़ाई”

पिछली पंक्ति नन्हा चेहरा बैठा हुआ था मन उदास मन में उमड़ती आशाएं छोटी मगर बहुत ही खास। स्कूल गए बगैर पढ़ाई बाला सीधे दूसरी में आई पहली की छूटी पढ़ाई मुनिया इसे समझ ना पाई। घर में नहीं हुई पढ़ाई कुछ भी ये समझ न पाई अक्षर शब्द सब अनजाने अंक संख्या सब हुए…

कविता- “बात पते की”

जिन्दगी में कीमती चेन हो ना हो मगर जिन्दगीं में सुकून की चैन होना चाहिए, चमकता सोना अपने पास हो ना हो मगर, सोने पर शरीर को आराम होना चाहिए । आदमी के पास कार हो ना हो, लेकिन संस्कार होना चाहिए, गद्दे हो सकते है कीमती नरम, पर उस गद्दे पर नींद आनी चाहिए…

कविता- “कोयला बना कोहिनूर”

जान गया मैं मेरी कीमत, जो पड़ा था अंधकार कोने में काला-कुचला बदसूरत सा, था किसी अनजाने में नजर पड़ी जब जोहरी की, इस मिट्टी के टीले में हाथ आते ही चमक उठा, किस्मत अपनी सजाने में । अपने हाथो से तरासकर, कोयला को कोहिनूर कर दे कच्ची गीली मिटटी को थाप देकर, सही रूप…

कविता – “काँपते हाथ की लाठी”

वो झुका हुआ कमजोर कंधा,  धुंधली सी असहाय निगाहें, वो कांपते हुए मजबूर हाथ,  लिये हुए लाठी का साथ। निहार रहे किसी अपनों को,  वो मन में दबे सैकड़ों जस्बात, हमे भी मिले सहारा कोई कंधा, कोई थामे हमारा भी हाथ। आज ये झुक गए हमारे कंधे, कभी हुआ करते थे मजबूत, जिस पर बिठाकर…

कविता – “प्यारे बापू गाँधी”

आजादी का परवाना था, खादी ओढे रहता था सत्य अहिंसा के दम पर, अंग्रेजो को मार खदेड़ा था अडिक और निर्भीक जैसे  चट्टानों पहाड़ सा हिला न सके कोई भी, ऐसा मजबूत ठाव था । सादा जीवन उच्च विचार, धनी मन के बापू थे एक आवाज में चल दिए सब, ऐसे मेरे बापू थे स्वदेशी…

कविता- “समझें वृद्धों के जस्बात”

ओझल मन अकेलापन, झुर्रियों से सना शरीर आंख धंसी, धुंधलापन बहरापन कमजोर दांत नींद नहीं आंखों में करवट से बीतती है रात एक बोझिल सा चेहरा झिलमिलाती सी आंख । टिमटिमाती आशाएं अपनों से बहुत से अरमान बस कभी-कभी हल्की सी मुस्कान थोड़ी सी खुशियों में डूबने का अरमान जीवन भर बने अपनों के बने…

कविता – “श्रद्धा ही श्राद्ध”

पड़ा खाट पर बूढ़ा बाबा करा रहा है दे आवाज लगी भूख उदर जल रहा भोज अग्नि से कोई सींच बना कलेवा बाबा का ग्रहलक्ष्मी ले आई थाल पकवान देखकर मुस्काया   कैसे खाए नहीं थे दांत । मन रोया और तन थर्राया   बूढ़ी अवस्था की है भान जब युवा था तब तो मैंने …

कविता – “जीवन संगनी”

जीवन में संगनी का पग, बड़ा कमाल कर जाता है सूने जीवन में जैसे, बसंत लेकर आता है चार पगों में दुनिया स्थिर, तीव्र वेग सह जाता है जीवन का संसार चक्र, इन पहियों से बढ़ जाता है l   उम्र का एक पड़ाव जब साथ किसी का भाता है जीवन का सच्चा सुख संगिनी…

कविता- “हिन्दी हिन्द की शान”

हिन्दी हमारी प्यारी भाषा, हिन्दी हमारी शान है हिन्दी से शुरू होती, हमारी सुबह शाम है ।   हिन्दी में बातें-बोली होती, आते सब जज्बात है हिन्दी की तो बात निराली, मधुर सलोनी तान है।   कोयल सी मधुर ध्वनि है, सीधी-सादी बहुत सरल है हम सब के ह्रदय में बसती, गंगा सी निर्मल धार है।   गागर में सागर भर…