कविता – “भूखा न हो कोई उदर”
हे दिखावा के पुजारी, तेरा हृदय कम्पित नही कान तुम्हारे बंद है, सिसकियाँ क्यों सुनते नही बंद हुई आँखे क्यों, दौलत के इस भार से कर क्यों न उठ रहा, दूसरों के उपकार में । किलकारियों की गूंज में, दफ़न हुए जस्वात क्यों थोड़ा नीचे भी देखो, आंसूओं से भीगी साँस को कहीं दूर…
