कविता – “भूखा न हो कोई उदर”

हे दिखावा के पुजारी, तेरा हृदय कम्पित नही कान तुम्हारे बंद है, सिसकियाँ क्यों सुनते नही बंद हुई आँखे क्यों, दौलत के इस भार से कर क्यों न उठ रहा, दूसरों के उपकार में ।    किलकारियों की गूंज में, दफ़न हुए जस्वात क्यों थोड़ा नीचे भी देखो, आंसूओं से भीगी साँस को कहीं दूर…

कविता – “कोविड के बाद विद्यालय जीवन”

दुबके पाँव, कोरोना आया बच्चों को है, खूब सताया बन्द हुआ, हमारा स्कूल मुरझा गए, बागों के फूल। बन्द हुई , स्कूल पढ़ाई टीचर की है, याद सताई सहपाठी सब, हो गए दूर घर मे रहने, को मजबूर । नन्ही गुड़िया, समझ न पाये अब वो क्यो, स्कूल न जाये घर मे हो गए, बच्चे…

कविता – “जीवन का अंतिम सत्य”

बड़ा आश्चर्य हुआ, उस दिन मुझे मेरे जाने से उन्हें, आंसू बहाते देखा तारीफों के, पुल पर सवार होकर मेरी अच्छाईयों के, किस्से सुनाते देखा । उस दिन शरीर, बड़ा भारी लगा मेरा जिस दिन रुह, आजाद हुई तन से जो कभी पूछते नहीं थे, हाल-ए दास्ताँ आज मेरे इर्द-गिर्द भटकते हुए देखा । तरसता…

कविता : “नए रंग में राखी”

सजी है राखी बाजारों में नए आकार और नए रंगों में प्यार से लिपटी डोरियों में सजी दुकाने टोलियों में । चहल बढ़ी अब संगे साथी रौनक लेकर आई है राखी कोरोना को मुह चिढ़ाने लोग आये अब मैदानों में । झुण्ड बनाकर सब खड़े है झुण्ड में देखों सब चलें है गाँव-शहर और डगर-डगर…

कविता – “राखी”

भाई-बहिन के प्यार स्नेह का प्रेम समरसता का अलंकर है राखी आँखों में दुलार, कलाई सजा प्यार मन में उमड़ती प्रेम तरंग है राखी । सारा जीवन अटूट रिश्तों की डोर विश्वास- सम्मान का नाम है राखी धागे बंध जाए कलाई पर भाई के बहिन के लिए अटूट साँस है राखी । भाई के लिए…

कविता – “सावन की बहारें”

सावन आया पहन हरियाली धूम मचाये है बदरी काली धरती ने पहना है हरा श्रृंगार नदियों ने पहना है नीर रुपी हार । सावन की फुहारें मंद-मंद बरसना भोरों का जैसे फूलों पे सरकना मदहोश घटा अम्बर बिखारे बादलों से दिनकर करें है इशारे । रंग-बिरंगी सुन्दरता फूलों में आई चारो तरफ है मदहोशी छाई…

कविता – “झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई”

दुर्गा रूप में जन्मी थी वो झाँसी की महारानी।। आओ तुम्हे बताएं,लक्ष्मीबाई की कहानी।। सन अठ्ठारह सौ अट्ठाइस और दिन था बुधवार।। वाराणसी की पावन धरा पर देवी ने लिया अवतार।। बचपन से ही थी वो वीरता की निशानी।। आओ तुम्हे बताएं,लक्ष्मीबाई की कहानी।। मोरोपन्त थे पिता माता थी भागीरथी बाई। सबकी बहुत लाडली थी…

कविता – “जयती जय भारत माता”

हमें फक्र है देश पर अपना यहाँ हमारा जन्म हुआ इस देश का गुणगान गाये मधुर मनोहर गगन सुआ l अनेक रंग में विविध ढ़ंग में मेल-मिलाव रहते संग में धर्म- संस्कृति मेल निराला राम-रहीम रहे एक ठाव में l सब देश में देश निराला प्रेम सौहार्द है चाम हमारा देश के खातिर मर मिटने…

कविता- “हर स्त्री की कहानी”

पहले बहुत बोलती थी, न जाने क्यों ख़ामोश रहने लगी हूँ।। बहुत खुश रहती हूं बाहर से,न जाने क्यों अंदर ही अंदर घुटने लगी हूं।। कभी कहानियां हुआ करती थी जिंदगी की बातें।। न जाने क्यों अब इन्हें महसूस करने लगी हूं।। पहले थोड़ा सुन कर बहुत सुना दिया करती थी।। न जाने क्यों अब…

कविता – “बेसहारा मासूम बचपन”

तनिक तो सुनलो ये बाबू अब भूख नहीं होती काबू न कोई छत हमारे सर नंगे-भूखे है खाली कर l सड़कों पर मलिन गलिन में कर फैलाये धूप-वारिश में ये मजबूरी विकट खडी है उदर भरण की ठेय नहीं है l कोई धुतकारे कोई है मारे मजबूरी के हम है सारे कोई तो सुध लो…