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“मेरे सपनों का 2047 का भारत”

प्रस्तावना- भारत जो कि विश्व में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाले देश के रूप में जाना जाता है। शायद इसलिये ही इसे “युवा भारत” कह कर पुकारा जाता है। आज विश्व में भारत अपनी युवा ऊर्जा के साथ विकास के  पायदान पर लगातार आगे बढ़ रहा है। क्षेत्र भले ही कोई भी हो भारत का हर…

Suryakant Chaturvedi seoni

कविता : सुरसा बनी महँगाई

महँगाई फलफूल रही  जकड़ रही है देश को नए- नए रूप में आकर बदल रही है वेश को हर जगह महँगाई की मार तोड़ रही कमर को खाने को सोचने लगे है महँगा हुआ राशन जो। किसान को तो खाद के मांदे आधी हुई कमाई हर चीज की दुनी कीमत सुरसा बनी महँगाई मिट्टी भी…

कविता – “आंखों का नूर”

पथराई अखियन से देखे नूर कहीं जैसा चला गया आस भरी निगाहों से ये प्रीत ममता का वह गया। कलेजे का टुकड़ा बिछडा बहुत दिन गए हैं बीत याद बसायें मन में सारी दिल में उमड़ रही है मीत। कही दूर बसाकर अपना देश प्रीत ने बनाया अलग सा वेश चमक भरी गलियाँ भुला गई…

“एक ऐसा भी करवा चौथ”

साहित्य- सुबह जल्दी उठकर पुष्पा अपने दैनिक काम में लग गई । आज सोचा था कि दोपहर के पहले सब काम निपटकर थोड़ी देर आराम करेगी। दिनभर निर्जला निराहार व्रत जो रखना है उसे आज। हाँ! पिछले आठ साल हो गए है उसे यह व्रत करते हुए । आज सुहागिन महिलाओं का बड़ा कठिन लेकिन…

कविता : चुभता शूल

कहीं धुँआ तो कहीं जहर है हर तरफ देखो मचा कहर है सब अनजाने ये कैसा शहर है भीड़ बड़ी पर अकेला पहर है। मची रही हर तरफ लूटम लूट है इसकी मानो मिली खुली छूट है सस्ती हुई महँगी ये चर्चा आम है दूध में मिले पानी सरल काम है। लूट की देखो ये…

कविता – “तरुवर”

“ऊंचे ऊंचे पेड़ देखो गगन को झू रहे हरि-हरि पत्तियों में मंद मुस्कान है सीना ताने एक एकजुट होकर ये तरु लक्ष्य के भेदन को देखे आसमान है।। इत तित देखन में मनोहर लगत है झुमें ये कलाओं से लगे कलाबाज है सावन की रिमझिम बूंद पड़ी तन में भीगते नहाए हुए लगे चमकदार है।।…

“शुरू हुई फिर से पढ़ाई”

पिछली पंक्ति नन्हा चेहरा बैठा हुआ था मन उदास मन में उमड़ती आशाएं छोटी मगर बहुत ही खास। स्कूल गए बगैर पढ़ाई बाला सीधे दूसरी में आई पहली की छूटी पढ़ाई मुनिया इसे समझ ना पाई। घर में नहीं हुई पढ़ाई कुछ भी ये समझ न पाई अक्षर शब्द सब अनजाने अंक संख्या सब हुए…

कविता- “बात पते की”

जिन्दगी में कीमती चेन हो ना हो मगर जिन्दगीं में सुकून की चैन होना चाहिए, चमकता सोना अपने पास हो ना हो मगर, सोने पर शरीर को आराम होना चाहिए । आदमी के पास कार हो ना हो, लेकिन संस्कार होना चाहिए, गद्दे हो सकते है कीमती नरम, पर उस गद्दे पर नींद आनी चाहिए…

कविता- “कोयला बना कोहिनूर”

जान गया मैं मेरी कीमत, जो पड़ा था अंधकार कोने में काला-कुचला बदसूरत सा, था किसी अनजाने में नजर पड़ी जब जोहरी की, इस मिट्टी के टीले में हाथ आते ही चमक उठा, किस्मत अपनी सजाने में । अपने हाथो से तरासकर, कोयला को कोहिनूर कर दे कच्ची गीली मिटटी को थाप देकर, सही रूप…

समान शिक्षा बने देश का मुद्दा

देश में एक देश-एक विधान-एक संविधान लागू हो रहा है। लेकिन, क्या इस मुद्दे में शिक्षा शामिल नहीं हो सकती? “अपने देश में भिन्न-भिन्न प्रकार के शिक्षण-संस्थानों में भिन्न-भिन्न प्रकार की शिक्षा दी जा रही है। सबके पाठ्यक्रम से लेकर प्रबंधन तक अलग-अलग हैं। जिनका सरकारीकरण से लेकर व्यापारीकरण तक हो चुका है और पढ़ने…