कविता – “श्रद्धा ही श्राद्ध”
पड़ा खाट पर बूढ़ा बाबा करा रहा है दे आवाज लगी भूख उदर जल रहा भोज अग्नि से कोई सींच बना कलेवा बाबा का ग्रहलक्ष्मी ले आई थाल पकवान देखकर मुस्काया कैसे खाए नहीं थे दांत । मन रोया और तन थर्राया बूढ़ी अवस्था की है भान जब युवा था तब तो मैंने …
