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कविता – “हिन्दी हमारी शान”

“हिन्दी हमारी शान“ ——————————– हिन्दी हिन्द की शान हमारी हिन्द धरा की आन हिन्दी भाषा माता जैसी समरसता की खान। हिन्दी का सम्मान करें हम हिन्दी मे काम करें हम हिन्दी का विस्तार बढ़े तो हिन्द का होगा नाम। हिन्द रहते हिन्दी आना गर्व की है बात हिन्दी मे ही निकलेंगे अन्दर के जस्बात। हिन्दी…

कविता – दर्पण

कान्हा तेरी भक्ति में, जीवन है मेरा अर्पण।। ह्रदय में तुम बसे हो,ये है तुम्हारा दर्पण।। जब जब तेरे दर्श को मेरे नयन तरसते। मन में बसी सलोनी सूरत पे है ये मरते।। इस प्रेम की पुजारिन ने, कर दिया है समर्पण,, ह्रदय में तुम बसे हो,ये है तुम्हारा दर्पण।। अंतिम समय जो आये,यम दूत…

Madhu shubham pandey

कविता – “इन सा नहीं कोई दूजा”

माता-पिता की करूँण तपस्या प्यार स्नेह ममता की काया    जीवन पाठ पढ़ाने वाली इनके सिवा सब छल की माया लाड़ प्यार से दिए सहारे थामें रखा साथ हमारे हरदम ऊँगली थामे रखा है न डिगने दिया पैर हमारे । छोटी सी चोट लगी तो आह ! माँ के दिल से आई मेरे सपने पूरे करने…

कविता – “शिक्षक”

साधारण की एक शख्सियत, सच्चा सीधा सरल स्वाभाव, मुख मनोहर तेज भाल पर, नया नूतन ज्ञान के थाव । अनुशरण हम करें हमेशा समझ ज्ञान की है खान जीवन का ये पाठ पढ़ाए   देते हमें विद्या का दान । जीवन ज्ञान खूब बताये    इनकी हमें सीख भी भाये जीवन पूँजी नित्य बढ़ाए थाप देकर…

कविता – “गुजरे ज़माने का वैभव”

गुजरे ज़माने का वैभव, खंडहर में कभी रहा होगा चमक सुनहरें रंगों से कभी, यह भी सजा होगा दहलीज पर रौनक, दमकती रही होगी कभी वहाँ शिखरों का दीदार ख़ुशी से, सभी ने किया होगा ।   जहाँ चलती थी, एक छत्र हुकूमत किसी की आदेश पर मर मिटने को, तैयार रहते थे सेवक क्या…

कविता – “कवि की कलम”

काश कलम में कोई, अद्भुत तेज आ जाता लिखते-लिखते, मैं साहित्यकार बन जाता लेखनी में कोई ऐसा, प्रभाव आ जाता मेरे हर शब्द में कविता सा, झरना बह जाता ।   मेरी कलम से, भावना की गहराई झलके छन्दों के श्रृंगार से, मेरी पंक्ति दमके  हर शब्द ज्ञान का, भंडार हो जाता  काव्यों में रसों का,…

कविता – “भूखा न हो कोई उदर”

हे दिखावा के पुजारी, तेरा हृदय कम्पित नही कान तुम्हारे बंद है, सिसकियाँ क्यों सुनते नही बंद हुई आँखे क्यों, दौलत के इस भार से कर क्यों न उठ रहा, दूसरों के उपकार में ।    किलकारियों की गूंज में, दफ़न हुए जस्वात क्यों थोड़ा नीचे भी देखो, आंसूओं से भीगी साँस को कहीं दूर…

कविता – “कोविड के बाद विद्यालय जीवन”

दुबके पाँव, कोरोना आया बच्चों को है, खूब सताया बन्द हुआ, हमारा स्कूल मुरझा गए, बागों के फूल। बन्द हुई , स्कूल पढ़ाई टीचर की है, याद सताई सहपाठी सब, हो गए दूर घर मे रहने, को मजबूर । नन्ही गुड़िया, समझ न पाये अब वो क्यो, स्कूल न जाये घर मे हो गए, बच्चे…

कविता : “नए रंग में राखी”

सजी है राखी बाजारों में नए आकार और नए रंगों में प्यार से लिपटी डोरियों में सजी दुकाने टोलियों में । चहल बढ़ी अब संगे साथी रौनक लेकर आई है राखी कोरोना को मुह चिढ़ाने लोग आये अब मैदानों में । झुण्ड बनाकर सब खड़े है झुण्ड में देखों सब चलें है गाँव-शहर और डगर-डगर…

कविता – “राखी”

भाई-बहिन के प्यार स्नेह का प्रेम समरसता का अलंकर है राखी आँखों में दुलार, कलाई सजा प्यार मन में उमड़ती प्रेम तरंग है राखी । सारा जीवन अटूट रिश्तों की डोर विश्वास- सम्मान का नाम है राखी धागे बंध जाए कलाई पर भाई के बहिन के लिए अटूट साँस है राखी । भाई के लिए…