“साहित्य का सर्जन”
जब अंतर्मन में भावों का भंवर उमड़-उमड़ कर आये जब उमंग- तरंग जहन में उफन-उफन जाए तब लेखनी चलती है उसे साकार रंग में भरती है तब साहित्य का सर्जन करती है l सुख-दुःख , अनुराग- मिलन जब जलती हो विचारों की निर्मम आग जब सजनी सजती है लिए प्रिये मिलन की आस तब अनायास ही लेखनी…
