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“साहित्य का सर्जन”

जब अंतर्मन में भावों का भंवर उमड़-उमड़ कर आये जब उमंग- तरंग जहन में उफन-उफन जाए तब लेखनी चलती है उसे साकार रंग में भरती है तब साहित्य का सर्जन करती है l सुख-दुःख , अनुराग- मिलन जब जलती हो विचारों की निर्मम आग जब सजनी सजती है लिए प्रिये मिलन की आस  तब अनायास ही लेखनी…

“दोस्ती”

ये मेरे दोस्त! मेरे सखा! मेरे हमदम! मेरे सुख-दुःख के साथी ! तेरे रहने भर से कट जाये जिन्दगी सारी l जब ग़मों के पहाड़ में खड़ा था अकेला   उस समय दिया तुमने हिम्मत का सहारा अपने जीवन में एक सच्चा दोस्त होना ही अपने आप में एक बहुत बड़ा सौभाग्य है l जब…

“सबल बने अब हर नारी”

कब तक अबला बनकर धरती का बोझ उठाओगी, कब तक यूँ सहमे- सहमे अपना दर्द छुपाओगी, बाल रूप से वृद्धा तक रही किसी की छाया में, अब समय वो आया है अपने को सिद्ध कर पाओगी l  रानी लक्ष्मी दुर्गावती वीर नारी की वंशज हो तुम शक्ति रूप दिखाओगी, सक्षम होकर दुनिया में चावला बनकर…

“सावन आया झूम के”

ये सावन की बारिश, ये ठंडी फुहारे पड़े जब बदन में, ये सिहरन उठादे बादल गरजना, बिजली का चमकना छम-छम बूंदें, आसमान से टपकना करें मन मेरा, बारिश में भीग जाऊं नन्ही-नन्ही बूंदों से, दिन भर नहाऊ नदी का किनारा, कल-कल आवाजें   मन में मचादें, गजब के तराने l धरती ने पहना है हरियाली…

Shyam Kumar Kolare: “नजरिया अपना- अपना”

Shyam Kumar Kolare : कविता- “नजरिया अपना-अपना” सूरदास निकालते है खामी मेरे चेहरे में,बेवफा को शिकायत है कि मैं दगा देता हूँ l कायर खोजते है परिश्रम मेरे जीवन में,शकी को शिकायत है कि मैं गलत देखता हूँ l लंगड़ा नुक्श निकालता है मेरी चाल में,लूला को शिकायत है मैं खराब चलता हूँ l मंदबुद्धि…

“बचपन की सुहानी यादें”

कोई लौटा दे वो बचपन के दिन दौडा करते थे सारा सारा दीन कभी टायरों के चक्कों के पीछे कभी उड़ते हवाई जहाज के नीचे रोज होती थी अमराई की सैर खाते थे झाडी की खट्टी मिट्ठी बेर l   कोई लौटा दे वो बचपन के दिन मस्ती करते थे सारे सारे दिन  खुश होते…

“नारी जीवन एक अबूझ पहेली”

जीवन एक पहेली है, जिसको कोई सुलझा ना पाया जब भी उसे सुलझाना चाहा, अनसुलझा ही पाया बहुत की थी कोशिश, इस पहेली को सुलझा ने की अपनी हर कोशिश को, हमेशा नाकामयाब ही पाया l कभी न बताना किसी को, अपने दिल की इच्छा और ना ही रखना किसी से, कभी कोई अपेक्षा अपने…

“कल्पनाएँ बचपन की”

जब मैं छोटी बच्ची थी सोचा ऐसा करती थी मम्मी जैसा यदि होती, अपनी मन की करती l   न कोई पढ़ाई लिखाई, न कोई स्कूल जाना खाना में भी अपनी पसंद, खुद खाती सबको खिलाती l   नई-नई साडी पहनकर, सैर सपाटे घूमने जाती यही सोचकर अक्सर मैं, ये सपनो में मैं खो जाती…

“मेरे घर की बगिया”

आँगन में है छोटी बगिया, फूल लगे है सुन्दर सुन्दर, महके जब खुसबू इनकी, मुग्ध हुआ ये सारा घर, रंग बिरंगे पुष्प खिले है, कुछ कुशुम मुस्काती, तितली का बाजार लगे, जब फूलो पर मडराती l मोगरा केवड़ा चम्पा चमेली, गुलाब फुले है हँसती लिली, मेरी आहाट से दूब हँसें, तो झुइमुई है सरमाती लता…

महंगाई की मार, बस करो सरकार

अब मत सरकाओ सरकार, आफत बनी है महगाई, पहले भी तो आग लगाईं, अब फिर से ले रही अंगडाई, नून तेल सब महगे हो गए, महंगी हुई साग की कढ़ाई, अब तो रहम करो सरकार, चुभन लगी फटी चटाई l बच्चों का स्कूल है छूटा, झोपडी का छप्पर भी टूटा, अन्दर पड़ी हुई है खाट,…