“सावन की रौद्र बूँदें”
सावन काली अन्धयारी रातो में यूँ गम की भरी बरसातों में ये कहर ढाती बिजलियाँ हलचल मचादी भूमि में l कहीं मुसला तो कहीं रिमझिम से कहीं धीरे से कहीं जम-जम से कभी पोखर में कभी नदियों में हुआ जल-थालाथल बागियों में l कुछ तरसे एक-एक बूँदों को उम्मीद बने अधर प्यासों को हलधर की बने…
