कविता – “मुरली मनोहर कान्हा”
कान्हा तेरी मुरली, मधुर बाजे बोल यमुना के तट पर, ये गूंजे चारों ओर गोपिका के मन की, बनी है चितचोर बादल देखे नाचे है, जैसे वन में मोर । मुरली ऐसे बाजे , मन के तार ये सजाये सात सुरों के संगम से, संगीत बन जाए होठों पर ऐसी साजे, अधिकार ये जमाए गोपीओं…
