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“आस भरी निगाहें”

चौराहों फुटपाथों पर आम जरुरत की सजी दुकाने तीज त्यौहार या मढ़ई मेला,मोहल्ला का कोई ठेला   पेट पालने बच्चों का धूप जाड़ा में भी खड़ा रहता अपनी परवाह न करके दूसरो के लिए तत्पर्य रहता ।   कम लागत की ये दुकाने, स्वाभिमान से चलती है घर जाकर देखो इनके, दिहाड़ी से भट्टी जलती…

कविता : चुभता शूल

कहीं धुँआ तो कहीं जहर है हर तरफ देखो मचा कहर है सब अनजाने ये कैसा शहर है भीड़ बड़ी पर अकेला पहर है। मची रही हर तरफ लूटम लूट है इसकी मानो मिली खुली छूट है सस्ती हुई महँगी ये चर्चा आम है दूध में मिले पानी सरल काम है। लूट की देखो ये…

कविता : मैं भी रखूँगा एक उपवास

मैं भी रखूँगा एक उपवास, होटो पर हो सदा मुस्कान हे! आसमान के उजले चाँद ,नही तू मेरे चाँद सा सुन्दर  नित्य आता है नित्य जाता है, दमकने की तू करे चेष्टा  तुझसे ज्यादा रोशन मुखड़ा,दिखता मेरे चाँद के अन्दर। मैं भी रखूँगा एक उपवास, लम्बी उम्र हो मेरे चाँद की  कभी घटता न कभी…

कविता – “तरुवर”

“ऊंचे ऊंचे पेड़ देखो गगन को झू रहे हरि-हरि पत्तियों में मंद मुस्कान है सीना ताने एक एकजुट होकर ये तरु लक्ष्य के भेदन को देखे आसमान है।। इत तित देखन में मनोहर लगत है झुमें ये कलाओं से लगे कलाबाज है सावन की रिमझिम बूंद पड़ी तन में भीगते नहाए हुए लगे चमकदार है।।…

“इंसानियत”

किसी अंजान की निःस्वार्थ मदद करना और उससे कुछ भी न चाहना, इंसानियत होती है । दुःख तकलीफ जिल्म परेशानी देना शैतानो का काम होता है देना हो तो हिम्मत दो जस्बा दो मदद दो, सहायता दो ! इससे इंसानियत दिखती है मर्द औरत को आदेश देता है अधिकारी कर्मचारिओं को मालिक मजदूर को आदेश…

“शुरू हुई फिर से पढ़ाई”

पिछली पंक्ति नन्हा चेहरा बैठा हुआ था मन उदास मन में उमड़ती आशाएं छोटी मगर बहुत ही खास। स्कूल गए बगैर पढ़ाई बाला सीधे दूसरी में आई पहली की छूटी पढ़ाई मुनिया इसे समझ ना पाई। घर में नहीं हुई पढ़ाई कुछ भी ये समझ न पाई अक्षर शब्द सब अनजाने अंक संख्या सब हुए…

कविता- “बात पते की”

जिन्दगी में कीमती चेन हो ना हो मगर जिन्दगीं में सुकून की चैन होना चाहिए, चमकता सोना अपने पास हो ना हो मगर, सोने पर शरीर को आराम होना चाहिए । आदमी के पास कार हो ना हो, लेकिन संस्कार होना चाहिए, गद्दे हो सकते है कीमती नरम, पर उस गद्दे पर नींद आनी चाहिए…

कविता- “कोयला बना कोहिनूर”

जान गया मैं मेरी कीमत, जो पड़ा था अंधकार कोने में काला-कुचला बदसूरत सा, था किसी अनजाने में नजर पड़ी जब जोहरी की, इस मिट्टी के टीले में हाथ आते ही चमक उठा, किस्मत अपनी सजाने में । अपने हाथो से तरासकर, कोयला को कोहिनूर कर दे कच्ची गीली मिटटी को थाप देकर, सही रूप…

कपड़ा बैंक सेवा सहयोग संगठन छिन्दवाड़ा उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए सम्मानित

समाज मे रहकर अपने से समकक्ष व अपने से दीनहीन जनो की व्यथा पर जिसके ह्रदय मे करुण भाव उपज जाँय, तो समझ लिजिए उसे धरती पर जन्म देकर विधाता स्वयं मुग्ध हो रहे हो। छिन्दवाड़ा – कुछ यही जज्बा और योग्यता कपड़ा बैंक के संरक्षक महेश भावरकर एवं कपड़ा बैंक की समस्त टीम में मौजूद…

कविता- “समझें वृद्धों के जस्बात”

ओझल मन अकेलापन, झुर्रियों से सना शरीर आंख धंसी, धुंधलापन बहरापन कमजोर दांत नींद नहीं आंखों में करवट से बीतती है रात एक बोझिल सा चेहरा झिलमिलाती सी आंख । टिमटिमाती आशाएं अपनों से बहुत से अरमान बस कभी-कभी हल्की सी मुस्कान थोड़ी सी खुशियों में डूबने का अरमान जीवन भर बने अपनों के बने…