Swami Swaroopanand Saraswati – Yaksh Prashn
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सनातन संस्कृति के ध्वजवाहक पूज्य गुरुदेव शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज

Swami swaroopanand saraswati yprashn seoni शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जीवन परिचय
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सिवनी (यक्ष-प्रश्न) – इस लेख में हम ब्रह्म लीन पूज्य जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) जी के संपूर्ण जीवन वृत्त पर चर्चा करेंगे।

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“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।”

श्रीमद्भगवद् गीता ( अ 4, श्लो – 7 व 8)

अर्थात् – श्रीमद्भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि “जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है तथा विनाश और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं इस पृथ्वी पर अनेकोनेक रुपों में अवतरित होकर धर्म की पुनर्स्थापना व संरक्षण करता हूँ और मानव को धर्म की प्रेरणा देता हूँ।”

भारत भूमि देवताओं के लिए भी तीर्थ है एवं इस भारत भूमि मे जन्म लेने के लिए देवता गण भी लालायित रहते है।

इस पुण्य धरा पर जम्दाग्नेय श्रीपरशुराम, श्रीरामश्रीकृष्ण जैसी अनेको देव विभूतियों नें जन्म लिया व सनातन धर्म की रक्षा करके आदी अनादि काल से चली आ रही, इस धर्म ध्वजा को आगे की दिशा दी।

6 शताब्दी ईसा पूर्व जब सनातन संस्कृति का ह्रास करने अधर्मी शक्तियाँ अपने चर्म पर थी व सनातन धर्म विलुप्ति की कगार पर था, तब सनातन धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिये वर्तमान केरल राज्य के कालाड़ी में पूज्य भगवान आदि-शंकराचार्य जी का अवतरण हुआ।

आपने सनातन धर्म को अक्षुण्य बनाने व सनातन संस्कृति को चहुँओर फैलाने के ऊद्देश्य से, भारत वर्ष के चारों ओर 4 मठों क्रमशः ज्योतिष्पीठ, श्रृंगेरी पीठ, द्वारिकाशारदा पीठ एवं पुरी गोवर्धन पीठ की स्थापना की एवं इन मठों की रक्षा के लिये अपने चार प्रतिनिधियों को नियुक्त किया जो शंकराचार्य के नाम से आज भी जाने जाते हैं।

आज भी इन पीठों में आदी गुरु शंकराचार्य जी भगवान के ये प्रतिनिधि सनातन संस्कृति के ध्वजवाहक के रूप में धर्म की रक्षा व संवर्धन कर रहे है।

हम सिवनी वासीयों के लिए ये सौभाग्य व गौरव का विषय है कि आदि गुरु शंकराचार्य भगवान द्वारा स्थापित इन मठों में से दो मठों के अनन्त श्री विभूषित ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand Saraswati) जी महाराज का जन्म सिवनी जिले में हुआ।

पूज्य भगवान जगद गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपा नंद सरस्वती जी महाराज – Credit Facebook Page ( श्री ज्योतिर्मठ बद्रीका आश्रम हिमालय)

गुरु पूर्णिमा के इस पावन पर्व पर, आज हम इस लेख के माध्यम से आपको महाराज श्री के जीवन से जुड़े कुछ प्रमुख बिन्दुओं से अवगत करायेंगे –

जन्म (1924 ई .)-

आपका जन्म मध्यप्रदेश स्थित सिवनी जिले के दिघौरी नामक ग्राम में, कान्यकुब्ज ब्राह्मण शांडिल्य गोत्र वंशोद्भव श्रद्धेय श्री पंडित धनपति उपाध्याय जी (पिता) एवं मातुश्री श्रद्धेय श्रीमती गिरजादेवी के यहां, विक्रम संवत् 1981 भाद्रशुक्ल तृतीया सोमवार रात्रि 9.00 बजे (लगभग) तदनुसार 3 सितम्बर 1924 ई. को हुआ। आपके जन्म का नाम पोथीराम पड़ा।

शिक्षा – दीक्षा (1932-1937ई) –

आपकी प्रारंभिक शिक्षा दिघोरी एवं मुंगवानी कला में हुई। 1932 ई में आपके पिताश्री गोलोकवासी हुये। 1937 ई में लगभग 13 वर्ष की आयु में आपका यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हुआ।

आपने गृह ग्राम में कुलगुरु स्वामी श्री शिवानन्दजी एवं साधुओं और योगियोंके सत्संग के द्वारा आपने ज्ञानार्जन किया।

वैराग्यभाव (1937ई)-

छिंदवाड़ा में श्री मुक्तानन्द परमहंस जी के प्रवचनो से प्रभावित होकर वैराग्य लेने का दृढ़ निश्चय किया। आपमे प्रारम्भ से ही लौकिक कार्यों के प्रति तटस्थता व रामचरित मानस पठन में अपूर्व श्रद्धा थी।

अत: मातुश्री का स्नेहिल आशीष लेकर आपने 13 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग दिया व साधु महात्माओं के साथ देशाटन के लिए निकल गये।

ज्ञान – साधना (1940-1941ई )-

आपने महात्मा जी के साथ नरसिंहपुर क्षेत्र में 2 वर्ष भ्रमण किया, इसी अवधि में झोतेश्वर में स्थापित संस्कृत पाठशाला में संस्कृत अध्ययन किया व सन् 1940ई में काशी चले गये।

सन् 1941ई में उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले के ग्राम रामपुर में लगभग डेढ़ वर्ष तक संस्कृत का गहन अध्ययन किया, यहीं से मधुरवाणी, सौम्यरूप और साधुत्व के भाव से आकृष्ट जनसाधारण के आग्रह पर प्रवचन कार्य आरम्भ कर, गंगातट पर अपूर्व साधना तपस्या की एवं जनमानस द्वारा स्वरूपानन्द नाम प्राप्त कर स्वरूपानंद के नाम से पहचाने जाने लगे।

स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रियता (1942-1943ई )-

आपने अगस्त 1942 ई “भारत छोड़ो आन्दोलन” में काशी विश्वविद्यालय में सत्याग्रही छात्रों के साथ विप्लवी कार्यक्रमों में सक्रिय सहभागिता निभाई।

चन्दोली कस्बे में तार काटते हुए बंदी के रूप में 9 माह का सपरिश्रम कारावास व इसी के समानान्तर कर्मशाला रेलवे पुल उड़ाने में संलग्न होने के संदेह में भी कारावास पाया, पुन: 1943 ई में बरमान घाट में संदेह में बंदी बनाए जाकर 2 माह का कारावास पाया।

दण्ड – दीक्षा (1950ई )-

26 वर्ष की अवस्था में सन् 1950 ई की पौष शुक्ल एकादशी को जगद्गुरु शंकराचार्य ज्योतीष्पीठाधीश्वर दण्डी स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज से दण्ड – दीक्षा ग्रहण कर दण्डी स्वामी की उपाधि से विभूषित हुए।

राजनैतिक संपर्क (1951ई )-

असत् के प्रतिरोध एवं राजनीति और धर्म के समन्वित जनहितार्थ पूज्यपाद दण्डी स्वामी श्री हरिहरानन्द सरस्वती (श्रीकरपात्री स्वामी) जी महाराज के विशेष अनुरोध तथा आग्रह पर रामराज्य परिषद् का अध्यक्ष पद स्वीकार कर, पद का 2 वर्षों तक निर्वहन किया।

गौ – रक्षा आन्दोलन (1954ई)-

आपने गौ हत्या विरोधी आन्दोलन सन् 1954 ई में कलकत्ता के टिंगरा को बंद कराने हेतु सत्याग्रह तथा एक जत्थे का नेतृत्व किया एवं 15 दिनों का कारावास मिला।

जेल के भीतर दण्ड न ले जाने के आदेश के विरोध में अन्न – जल का त्याग कर, अन्तत : दण्ड ले जाने की विशेष अनुमति प्राप्त की।

गौ – रक्षा आन्दोलन हेतु जनजागरण अभियान और प्रवचनों के फलस्वरूप कलकत्ता छोड़ने का सरकारी आदेश मिला, जिसे न मानने पर पुन : दो माह का कारवास दिया गया, दण्ड की वैधता को चुनौती देने पर दण्ड रद्द किये जाने के आदेश की प्राप्ति तक डेढ़ माह कारावास में रहे।

गौ वध निषेध आन्दोलन में तिहाड़ जेल दिल्ली में स्वामी करपात्री जी महाराज, पुरीपीठाधीश्वर स्वामी निरंजनदेव तीर्थ जी महाराज के साथ 2 माह की सजा काटी।

1956ई में भेड़ाघाट (जबलपुर) में पूज्य माता जी का गौलोक गमन हो गया।

आध्यात्मिक उत्थान मण्डल ( 1964ई )-

जनजीवन को तुच्छ भौतिक विडम्बनाओं के छलावे से आध्यात्मिक सहज शान्तिमयता की ओर मोड़ने तथा व्यक्तिगत स्वार्थों के ऊपर उठकर समाज सेवा-भावी मानसिकता के विकास के लिये 14 मई 1964 ई को परमहंसी गंगा आश्रम में आध्यात्मिक उत्थान मण्डल की स्थापना की।

जिसका नामकरण ॐ – अ , उ , म- के द्वारा कर प्रणव मन्त्र से जनमानस को उत्प्रेरित किया। इस मण्डल की देशभर में 480 से अधिक शाखाएं संचालित हैं ।

विश्वकल्याण आश्रम की स्थापना (1970ई) –

आपने 6 नवम्बर 1970 ई झारखण्ड प्रान्त के सिंहभूमि जिला के अन्तर्गत छोटा नागपुर क्षेत्र में स्थित ग्राम पारलीपोस एवं शमीज के मध्य ‘काली-कोकिला’ दो नदियों के संगमस्थल पर अखिल भारतीय आध्यात्मिक उत्थान मण्डल के उपकेन्द्र ‘विश्वकल्याण आश्रम‘ की वि.सं. 2027 गोपाष्टमी (कार्तिक शुक्ल अष्टमी) में स्थापना की।

चाईबासा ( झारखण्ड ) के लगभग 30 हजार आदिवासी जो ईसाई बन चुके थे, उनकी विश्वकल्याण आश्रम के माध्यम से स्वधर्म में वापसी करायी।

वनवासी बालकों की शिक्षा के लिए विद्यालय व चिकित्सा हेतु आधुनिक सुविधायुक्त अस्पताल की व्यवस्था की। यहाँ प्रतिवर्ष शिवरात्रि के समय शिविर का आयोजन कर भोजन, वस्त्र, औषधि आदि का निःशुल्क वितरण किया जाता है।

संस्कृत भाषा के प्रचार – प्रसार हेतु सन् 1972 ई में ज्योतिरीश्वर ऋषिकुल संस्कृत विद्यालय की स्थापना की ।

45 वें ज्योतिष्पीठाधीश्वर (1973ई )-

अगस्त 1973 ई में जगद्गुरु शङ्कराचार्य ज्योतिष्पीठाधिश्वर स्वामी श्री कृष्णबोधाश्रम जी महाराज के ब्रह्मलीन होने पर विद्वत् परिषद् द्वारा महाराजश्री का 7 दिसम्बर 1973 ई का विधिवत् अभिषेक कर शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामीश्री अभिनव सच्चिदानंद तीर्थ तथा गोवर्धनपीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री निरंजनदेव तीर्थ द्वार सिंहसत्तारूढ़ कराने की विधि सम्पन्न करायी गयी।

Source- Credit Facebook Page ( श्री ज्योतिर्मठ बद्रीका आश्रम हिमालय)

16 जून 1978 ई को ज्योतिर्मठ में प्राचीन स्थलों का जीर्णोद्धार सम्पन्नकर आयुर्वेद अनुसंधान केन्द्र तथा भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुरसुरन्दरी की भव्य प्रतिष्ठा की ।

चतुष्पीठ सम्मेलन (1979ई )

1-5-1979 ई को आधशङ्कराचार्य जी महाराज की जन्मस्थली कालाड़ी ( केरल ) में चारों पीठों के शङ्कराचार्यों के ऐतिहासिक चतुष्पीठ सम्मेलन में भाग लेकर सनातनी हिन्दू के मार्गदर्शक सिद्धान्तों का विवेचन किया ।

गोटेगाँव में 28 जनवरी 1981ई को ब्रह्म विद्या परिषद् की स्थापना की।

78वें द्वारकाशारदापीठाधीश्वर (1982ई )-

द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री अभिनव सच्चिदानन्द तीर्थ जी महाराज के ब्रह्मलीन होने पर उनके इच्छापात्र के अनुसार तथा गुजरात की जनता के विशिष्ट आग्रह पर 27 मई 1982 ई को द्वारकाशारदापीठाधीश्वर पद पर, श्रृङ्गेरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री अभिनव विद्यातीर्थ जी महाराज द्वारा अभिषेक सम्पन्न हुआ ।

भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी की प्राण – प्रतिष्ठा (1982ई )-

मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में परमहंसी गंगा आश्रम श्रीवनम् के सुरम्य अरण्य में 225 फीट ऊँचे विशाल मंदिर में 26 दिसम्बर 1982 ई को श्रृङ्गेरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी अभिनव विद्यातीर्थ जी महाराज द्वारा भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी की मूर्ति की भव्य प्राण प्रतिष्ठा ।

माँ भगवती राज राजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी माता – Credit Facebook Page ( श्री ज्योतिर्मठ बद्रीका आश्रम हिमालय)

शंकराचार्य नगर में शिव प्राण – प्रतिष्ठा (1984 ई )-

श्रीद्वारकाशारदापीठ के ब्रह्मलीन शङ्कराचार्य स्वामी श्री अभिनव सच्चिदानन्द तीर्थ जी महाराज की कल्पना के अनुरुप उनके उत्तराधिकारी के रूप में जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने शिवलिङ्गाकार भव्य मंदिर के निर्माण को पूर्ण कराया तथा भगवान् श्रीचन्द्रमौलीश्वर एवं द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग और अन्य देवी – देवताओं की स्थापना की व मानसरोवर का भी निर्माण कराया।

कैलाशधाम के नाम से विख्यात गुजरात का यह भव्य तीर्थ दर्शनीय है।

गुजरात प्रदेश में अहमदाबाद से 40 किमी दूर खेड़ा जिले में इस शिवलिङ्गाकार मंदिर का निर्माण द्वारकाशारदापीठ के ब्रह्मलीन जगद्गुरु शङ्कराचार्य जी महाराज ने प्रारम्भ करवाया था।

जिसे पूज्य महाराजश्री ने पूर्ण करवाया और उसका 29 फरवरी 1984 ई को प्राणप्रतिष्ठा समारोह करवाया जिसमें लाखों लोगों ने भाग लिया था।

धौलकापीठाधीश्वर (1986ई )-

अहमदाबाद में धौलकापीठ, वह पीठ है जहाँ उत्तराखण्ड में ज्योतिष्पीठ पर संकट के समय वहाँ से आये आचार्यों ने ज्योतिष्पीठ को परम्परा को जारी रखने का कार्य किया।

नवम्बर 1986ई में जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज धौलका पीठ पर भी अभिषिक्त किये गये ।

इस प्रकार आप उक्त ज्योतिष्पीठ के इतिहास की बिखरी हुई कड़ियों को जोड़कर विच्छिन्न परम्परा की निरंतरता का गौरव पुनर्स्थापित करने वाले शङ्कराचार्य बने ।

स्फटिकमणि शिवलिङ्ग की स्थापना (1987 ई )-

फरवरी 1987 ई को श्रीवनम् परमहंसी गंगा आश्रम सिद्धेश्वर में भव्य स्फटिक मणि शिवलिङ्ग की स्थापना की गई।

इसका वजन साढ़े सात किलो व ऊँचाई 11 इंच है । परमहंसी गंगा आश्रम क्षेत्र के श्रीनगर नामक स्थान में जगन्नाथ मंदिर का भव्य स्वरूप निर्मित तथा विशाल धर्मशाला का निर्माण कराया।

अकालग्रस्त गौवंश की सहायता (1988ई )-

गुजरात एवं राजस्थान में अकालग्रस्त क्षेत्र में गौवंश के रक्षार्थ बसंत पञ्चमी सन् 1988 ई को महाराजश्री के अनुमोदन पर गोटेगाँव ( श्रीधाम ) रेलवे स्टेशन से मालगाड़ी के साठ डिब्बों में चारा व भूसा भरकर तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ . शंकरदयाल शर्मा द्वारा हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया।

रामजन्मभूमि संघर्ष (1989-1993ई)-

रामजन्मभूमि पर हिन्दुओं को अधिकार दिलाने के ऊद्देश्य से 3 जून 1989 ई को चित्रकूट में अखिल भारतीय रामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति द्वारा महाराजश्री की अध्यक्षता में साधु – महात्मा सम्मेलन हुआ ।

  1. 27-4-1990 ई को महाराज श्री वाराणसी पहुँचे।
  2. 30-4-1990ई को आपने शिलाओं सहित गाजीपुर के लिये प्रस्थान किया। गाजीपुर से आजमगढ़ पधारे, यहीं पर पुलिस द्वारा आपको गिरफ्तार किया गया।
  3. 9-5-1990ई को महाराज श्री को बिना शर्त रिहा किया गया एवं कमिश्नर द्वारा क्षमा याचना की गई।
  4. 19-21 मार्च को ज्योतेश्वर गोटेगाँव में अखिल भारतीय विराट साधु महात्मा सम्मेलन में रामजन्मभूमि के पुनरुद्धार हेतु संकल्प लिया।
  5. पुनः 27-10-1993ई को राजस्थान के दो जांटी बालाजी धाम में महाराज श्री की अध्यक्षता में राममंदिर गर्भगृह निर्माण अयोध्या में किये जाने का निर्णय लिया गया।
  6. राम मंदिर का प्रस्तावित नक्शा महाराज श्री की प्रेरणा से कम्बोडिया के अंकोरवाट मंदिर के आधार पर तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने बनवाया।
  7. 17-11-1993 ई को प्रातः 10 बजे इलाहाबाद से दशरथ कौशल्या रथयात्रा का शुभारम्भ महाराजश्री द्वारा किया गया, जोकि 1-12-1993 ई को अयोध्या में समाप्त हुई ।
  8. 1994 ई में आपकी अध्यक्षता में श्रीराम जन्म भूमि न्यास का गठन किया गया।

30-4-1994 ई को विश्वकल्याण आश्रम झारखण्ड में 70 विस्तरों का आधुनिक सुविधायुक्त अस्पताल का निर्माण कार्य पूर्ण कराया।

हिङ्गलाज सेना का गठन (1995ई )-

तत्कालीन स्थिति में राष्ट्र की एकता – अखण्डता को , सनातनधर्म की व्यवस्थाओं के अनुसार दृढ़ बनाने के उद्देश्य से पूर्णत : अहिंसात्मक एवं आध्यात्मिक ‘हिङ्गलाज सेना‘ का गठन 12 मई 1995 ई को किया गया।

हिङ्गलाज पीठ‘ पाकिस्तान में, कराची से 90 मील की दूरी पर है जहाँ सती माता का ब्रह्मरन्ध्र गिरा था।

चूँकि वह स्थान अब सहज पहुँच में नहीं रहा इसलिए नरसिंहपुर जिले में पंचधारा तीर्थ हिङ्गलाज की प्रतिष्ठा एवं व्यवस्था आपके हस्ते की गई।

वर्ष 1995 ई में ही कलकत्ता के निकट कोन्नगर में भव्य मन्दिर बनवाकर भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुरसुंदरी की मूर्ति की स्थापना की।

मातृधाम, कातलबोड़ी (1997ई )-

मातृधाम कातलबोड़ी सिवनी में 17 मई 1997 ई को नवनिर्मित विशाल मंदिर में श्रीमाता राजराजेश्वरी देवी त्रिपुरसन्दरी की भव्य प्राण प्रतिष्ठा एवं महाराज श्री की पूज्य माता श्री गिरिजादेवी जी की मूर्ति स्थापना की।

दिघोरी (सिवनी) में दिव्य शिवलिङ्ग स्थापना ( 2002 ई )-

14 फरवरी 2002 ई को पूज्य महाराजश्री के जन्मस्थान पर उनके भक्तों द्वारा विशाल शिवालय का निर्माण कर दिव्य स्फटिक मणि से निर्मित शिवलिङ्ग की स्थापना पूज्य महाराजश्री द्वारा कराई गई ।

प्राचीन द्वारका शारदापीठ का जीर्णोद्धार (2004 ई)-

26-1-2004ई को प्राचीन शारदापीठ का जीर्णोद्धार कराकर कुम्भाभिषेक किया व श्रीशङ्कराचार्य गद्दी का निर्माण राजस्थान के वालेश्वर पत्थर से भारतीय शिल्पकला के द्वारा कराया एवं 2004 ई में इन्दौर ( म.प्र.) में शंकराचार्य मठ की स्थापना की।

महा – समाधि 2022 ई

11 सितंबर 2022 ई, वि.सं. 2079, अश्विन मास, कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि, दिन रविवार को परमहंसी गंगा आश्रम झोतेश्वर में आपने गौलोक गमन किया।

आपकी समाधि के सम्मुख शंकराचार्य महानुशासन तथा आपकी वसीयत अनुसार आपके प्रमुख शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी का ज्योतिष पीठ एवं स्वामी सदानंद सरस्वती जी का द्वारका पीठ पर अभिषेक किया गया।

“महापुरुषों का अवतार इतिहास बनाने के लिये ही होता है इतिहास बनाने का काम विलक्षण साधना और प्रतिभा सम्पन्न मनीषी ही करते हैं । स्वामी जी भी इतिहास का निर्माण कर रहे हैं । प्रथमवार चारों पीठाधीश्वरों का मिलन , दो – दो पीठों का शङ्कराचार्य होना और आदि शक्ति की प्राणप्रतिष्ठा कराना , धर्मान्तरण को रोकना , स्वधर्मनयन कराना ऐसे कार्य हैं जो धार्मिक इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित रहेंगे । आने वाले समय में लोग आपकी प्रशस्ति सुनते रहेंगे ।”

“इस लेख की जानकारी को महाराज श्री के निकटतम सूत्रों से प्राप्त किया गया है व इस लेख को लिखते समय पूरी सावधानी बरती गई है, कुछ चित्रों को सोशल मीडिया से यहाँ संकलित किया गया है।

फिर भी किसी प्रकार की त्रुटि व गलती पर हम क्षमा प्रार्थी हैं।”

Yaksh Prashn