कविता- "बुझा हुआ दीपक" – Yaksh Prashn
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कविता- “बुझा हुआ दीपक”

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सब कहते है, बेटा कुल का दीपक होता है

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जो वंश-परिवार की, रोशन की खान होता है  

पता नहीं ! हमेशा यह बात सत्य होती है

क्या बेटा से ही, परिवार की शान होती है ?

            बेशक बेटा माँ-बाप का सहारा होता है

            इनके जीवन में आखों का तारा होता है

            भविष्य की आस, सपनो का विश्वास होता है

            बाप की हिम्मत और माँ का नाज होता है ।

दुनिया में इसी चाह पे, ये खास होता है

बेटा की चाहत पर, ये विश्वास होता है ।

कुल का खेवनहार, वंश का वरिशदार होता है

कुल परंपरा, रीती-रिवाज का शिरोधार्य होता है

            इसी आस पर, सभी उम्मीदे टिकी थी

            बच्चों के बड़े होते तक, अपेक्षा बनी थी ।

            बड़े अदब से पाला था, हर सपना साकार करेगा

            मेरी हर अधूरी तमन्ना, मेरे लिए सार करेगा ।

बाप की परवरिश, और शिक्षा ने किस्मत चमकाई

बेटा का अच्छे दिन, बाप के माथे पर लकीर आई

उस दिन बूढ़े की उम्मीद, जस्बात तार-तार हो गया

बेटा माँ-बाप को छोड़कर, अलग रहने बोल गया ।

            बना लिया बेटा ने अपना ही अलग आशियाना

            उनके लिए बूढ़े माँ-बाप, अब बन गए बेगाना

            बेटा है दीपक! यही उनको अँधेरे में छोड़ गया

            दीपक से न मिली रौशनी, बस आस छोड़ गया । 

कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)