कविता : चुभता शूल – Yaksh Prashn
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कविता : चुभता शूल

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कहीं धुँआ तो कहीं जहर है

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हर तरफ देखो मचा कहर है

सब अनजाने ये कैसा शहर है

भीड़ बड़ी पर अकेला पहर है।

मची रही हर तरफ लूटम लूट है

इसकी मानो मिली खुली छूट है

सस्ती हुई महँगी ये चर्चा आम है

दूध में मिले पानी सरल काम है।

लूट की देखो ये खुली दुकान है

मुनाफा का सब सजा समान है

हर चीज का मिला  तय दाम है

समान काम का या बेकाम है।

होटल रेस्टोरेंट की देखो शान है

पचास की चीजें  दो सौ दाम है

बेबस मन से लें  सब समान है

शान दिखाने का बड़ा ठिकान है।

ऊँची दुकान के फीके पकवान है

एसी कूलर की हवा के भी दाम है

यहाँ की ठंड में भूले अरमान है

ऊपर देखो खाली आसमान है।

खुली लूट यहाँ बड़ी दुकान है

राशन में कंकड़ के भी दाम है

जिम्मेदारों की  मोटी चाम है

काम के नाम से  होती शाम है।

दूध में पानी कही पानी मे दूध है

काम के बदले चले बड़ी घूंस है

भ्रष्टाचार का बना यही मूल है

चुभता  यह  जहरीला शूल है।

सच्चाई मूर्छित हुई फले झूठ है

ईमानदारी के कुछ दिखे ठूठ है

कहे श्याम वेदना फटे हृदय टूट है

कौन संभाले ये बड़ा नीतिकूट है।

कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
#ShyamKumarKolare