“आस भरी निगाहें”
चौराहों फुटपाथों पर आम जरुरत की सजी दुकाने तीज त्यौहार या मढ़ई मेला,मोहल्ला का कोई ठेला पेट पालने बच्चों का धूप जाड़ा में भी खड़ा रहता अपनी परवाह न करके दूसरो के लिए तत्पर्य रहता । कम लागत की ये दुकाने, स्वाभिमान से चलती है घर जाकर देखो इनके, दिहाड़ी से भट्टी जलती…
