ठंडी का मौसम आया, दिन- रात हुआ सर्द
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!सब ओढ़े मोटा दुसाला, मिटाये सर्द का दर्द।
ऊनि वस्त्र से प्रीत जुड़े, ज्यों पवन तन पड़े
दिनकर की कर प्रतीक्षा, धूप से प्रीत यों बड़े।
पूस माह में सुर्ख सर्दी, अकड़ाये सबके हाड़
भोर में तेवर दिखाए, जैसे पड़े तमाचा गाल।
बच्चों के पास से जावे,युवा को भी ये सातवे
अधेड़ को पकड़न देखे , बूढ़े को ये न छोड़े।
अमीरन की बनी है दासी, गरीबो की सहेली
निराश्रितों को खूब दबाती,उनके लिए पहेली।
साल के चार महीने, चलता इसका जलवा
इससे डरते सब जन , ढके रखते है मुखड़ा।
सर्दी का मौसम ठंडा, हवा चलती सर-सर
सब घर मे दुबके बैठे, कोई न निकले बाहर।
अंगीठी भावे बुजुर्ग को, चारो ओर है धेरे बैठे
शाम सर्दी देती मीठा दर्द, जब चले हवा सर्द।
कवि / लेखक –
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
#ShyamKumarKolare
