सिवनी (बरघाट)[24 मार्च 2025]- बरघाट- ग्राम गोरखपुर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान-यज्ञ के तीसरे दिन सोमवार को कथा वाचक पंडित दिनेश मिश्रा ने भक्ति, निश्छल प्रेम और आध्यात्मिक शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए ध्रुव व विदुर चरित्र की कथा सुनाई।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!उन्होंने जोर देकर कहा कि ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग निष्कपट भक्ति और प्रेम है, जिसे ध्रुव जैसे बालक और विदुर जैसे साधकों ने अपने जीवन से सिद्ध किया।
ध्रुव चरित्र: बाल भक्ति की अद्भुत मिसाल
कथा व्यास पंडित दिनेश मिश्रा ने बताया कि मात्र पाँच वर्ष की आयु में ध्रुव ने घोर तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया।
उन्होंने कहा, “यदि एक बच्चा सच्ची लगन से भगवान का ध्यान कर सकता है, तो हम क्यों पीछे रहें? भक्ति का मार्ग उम्र या साधनों से नहीं, बल्कि श्रद्धा से तय होता है।”
ध्रुव को न केवल भगवान के दर्शन मिले, बल्कि 36 हजार वर्षों तक राज्य करने का वरदान भी प्राप्त हुआ। इससे स्पष्ट है कि बचपन में दिए गए संस्कार जीवनभर साथ रहते हैं।
विदुर-कृष्ण प्रसंग: प्रेम ही है परम भोग
विदुर चरित्र के प्रसंग में कथा व्यास ने बताया कि भगवान कृष्ण ने दुर्योधन के महल के विलासितापूर्ण “छप्पन भोग” को ठुकराकर विदुर की कुटिया में केले के छिलकों का सादा भोग स्वीकार किया।
उन्होंने समझाया, “भगवान प्रेम के भूखे होते हैं। विदुर और उनकी पत्नी ने जिस निष्ठा से उनकी सेवा की, उसके आगे छिलके भी अमृत बन गए।” इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि ईश्वर की कृपा पाने के लिए भौतिक संपदा नहीं, बल्कि हृदय की पवित्रता आवश्यक है।
भक्त प्रह्लाद: मातृगर्भ से मिला दिव्य ज्ञान
पंडित मिश्रा ने प्रह्लाद की कथा का उल्लेख करते हुए बताया कि उन्होंने माता कयाधु के गर्भ में ही नारायण मंत्र सुन लिया था। इस मंत्र के प्रभाव से उनके जन्म के बाद के कष्टों का निवारण हुआ।
यह उदाहरण बताता है कि आध्यात्मिक शिक्षा का बीज बचपन में ही अंकुरित होना चाहिए।
बच्चों को दें धार्मिक संस्कार: मिश्रा
कथा के दौरान पंडित मिश्रा ने माता-पिता को संबोधित करते हुए कहा, “बच्चों को बाल्यावस्था में ही धर्म, सेवा और प्रेम की शिक्षा देनी चाहिए। यही संस्कार उन्हें जीवन भर सही मार्गदर्शन देते हैं।”
उन्होंने ध्रुव के उदाहरण को दोहराते हुए कहा कि अच्छे संस्कार व्यक्ति को दिव्य फल प्रदान करते हैं।
भक्ति और सादगी का संदेश
इस कथा यज्ञ का उद्देश्य समाज को यह संदेश देना है कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए बाहरी आडंबरों की नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता की आवश्यकता होती है।
ध्रुव, विदुर और प्रह्लाद की कथाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि सच्ची भक्ति साधारण जीवन में भी असाधारण परिणाम ला सकती है।
