“कल्पनाएँ बचपन की”
जब मैं छोटी बच्ची थी सोचा ऐसा करती थी मम्मी जैसा यदि होती, अपनी मन की करती l न कोई पढ़ाई लिखाई, न कोई स्कूल जाना खाना में भी अपनी पसंद, खुद खाती सबको खिलाती l नई-नई साडी पहनकर, सैर सपाटे घूमने जाती यही सोचकर अक्सर मैं, ये सपनो में मैं खो जाती…
