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कविता – “सावन की बहारें”

सावन आया पहन हरियाली धूम मचाये है बदरी काली धरती ने पहना है हरा श्रृंगार नदियों ने पहना है नीर रुपी हार । सावन की फुहारें मंद-मंद बरसना भोरों का जैसे फूलों पे सरकना मदहोश घटा अम्बर बिखारे बादलों से दिनकर करें है इशारे । रंग-बिरंगी सुन्दरता फूलों में आई चारो तरफ है मदहोशी छाई…

कविता – “झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई”

दुर्गा रूप में जन्मी थी वो झाँसी की महारानी।। आओ तुम्हे बताएं,लक्ष्मीबाई की कहानी।। सन अठ्ठारह सौ अट्ठाइस और दिन था बुधवार।। वाराणसी की पावन धरा पर देवी ने लिया अवतार।। बचपन से ही थी वो वीरता की निशानी।। आओ तुम्हे बताएं,लक्ष्मीबाई की कहानी।। मोरोपन्त थे पिता माता थी भागीरथी बाई। सबकी बहुत लाडली थी…

कविता – “जयती जय भारत माता”

हमें फक्र है देश पर अपना यहाँ हमारा जन्म हुआ इस देश का गुणगान गाये मधुर मनोहर गगन सुआ l अनेक रंग में विविध ढ़ंग में मेल-मिलाव रहते संग में धर्म- संस्कृति मेल निराला राम-रहीम रहे एक ठाव में l सब देश में देश निराला प्रेम सौहार्द है चाम हमारा देश के खातिर मर मिटने…

कविता- “हर स्त्री की कहानी”

पहले बहुत बोलती थी, न जाने क्यों ख़ामोश रहने लगी हूँ।। बहुत खुश रहती हूं बाहर से,न जाने क्यों अंदर ही अंदर घुटने लगी हूं।। कभी कहानियां हुआ करती थी जिंदगी की बातें।। न जाने क्यों अब इन्हें महसूस करने लगी हूं।। पहले थोड़ा सुन कर बहुत सुना दिया करती थी।। न जाने क्यों अब…

कविता – “बेसहारा मासूम बचपन”

तनिक तो सुनलो ये बाबू अब भूख नहीं होती काबू न कोई छत हमारे सर नंगे-भूखे है खाली कर l सड़कों पर मलिन गलिन में कर फैलाये धूप-वारिश में ये मजबूरी विकट खडी है उदर भरण की ठेय नहीं है l कोई धुतकारे कोई है मारे मजबूरी के हम है सारे कोई तो सुध लो…

कविता – “लड़कियाँ”

(1) आँखों में अरमान लिये कुछ कर जाए ज्योति सा तेज होगा दीपक सी रोशनी होगी तुम मुझे कब तक रोकोगे , पत्थर पर लिखी इबारत हूँ तुम शीशे से कब तक तोड़ोगे हालातो की भट्टी में जब जब झोकोगे तपकर तब तब सोना बनूंगी तुम मुझे कब तक रोकोगे , पीछे खींचोगे तब मेरे…

“नारी”

ईश्वर की अनमोल कृति है   नाम धरा है नारी सर्वगुणों से पूरित करके धरती पर उतारी l ममता त्याग तपस्या का सजीव रूप दे डारी जिस घर मान हो नारी का वो घर सदा रहे उजियारी l अस्तित्व से है जीवंत जीवन न होने पर सूना पैर पड़े जब दर पर इसके समृद्धि हुई…

“सावन की रौद्र बूँदें”

सावन काली अन्धयारी रातो में यूँ गम की भरी बरसातों में ये कहर ढाती बिजलियाँ हलचल मचादी भूमि में l कहीं मुसला तो कहीं रिमझिम से कहीं धीरे से कहीं जम-जम से कभी पोखर में  कभी नदियों में हुआ जल-थालाथल बागियों में l कुछ तरसे एक-एक बूँदों को उम्मीद बने अधर प्यासों को हलधर की बने…

“जीवन रस”

वर्तमान बना सुखद घनेरा, भविष्य किसने है देखा क्यों कुढ़ता मन भीत मनोरे, मीनमेख निकलत ऐसा l   जीवन का रस आज घनेरे, पल-पल बीता जाए ! श्या जितना बटोर सके तो, उतना सुख दिन आये l नित्य दिन अंधकार बने है, तिल-तिल घटता जाये बिन पैरी समय चलत है, कभी न थकता जाए l…

“किताबों से दोस्ती”

किताबो से दोस्त हुई है जबसे तन्हाई तरसती है हरपल मिलने को मुझसे । ज्ञान की देवी विद्या की मूरत गुरु की दिखे इसमें सूरत सही गलत का पाठ पढ़ाती संस्कारी वो मुझे बनाती l इसमें मिलता ज्ञान भंडार विद्या की है सुन्दर खान ज्ञान विज्ञान इतिहास बताती अपनी मूल पहचान कराती l बहुदुर साहस…