कविता – “काँपते हाथ की लाठी”
वो झुका हुआ कमजोर कंधा, धुंधली सी असहाय निगाहें, वो कांपते हुए मजबूर हाथ, लिये हुए लाठी का साथ। निहार रहे किसी अपनों को, वो मन में दबे सैकड़ों जस्बात, हमे भी मिले सहारा कोई कंधा, कोई थामे हमारा भी हाथ। आज ये झुक गए हमारे कंधे, कभी हुआ करते थे मजबूत, जिस पर बिठाकर…
