कविता – “गुजरे ज़माने का वैभव”
गुजरे ज़माने का वैभव, खंडहर में कभी रहा होगा चमक सुनहरें रंगों से कभी, यह भी सजा होगा दहलीज पर रौनक, दमकती रही होगी कभी वहाँ शिखरों का दीदार ख़ुशी से, सभी ने किया होगा । जहाँ चलती थी, एक छत्र हुकूमत किसी की आदेश पर मर मिटने को, तैयार रहते थे सेवक क्या…
