कविता : चुभता शूल
कहीं धुँआ तो कहीं जहर है हर तरफ देखो मचा कहर है सब अनजाने ये कैसा शहर है भीड़ बड़ी पर अकेला पहर है। मची रही हर तरफ लूटम लूट है इसकी मानो मिली खुली छूट है सस्ती हुई महँगी ये चर्चा आम है दूध में मिले पानी सरल काम है। लूट की देखो ये…

Shyam Kumar Kolare
सामाजिक कार्यकर्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
#ShyamKumarKolare
कहीं धुँआ तो कहीं जहर है हर तरफ देखो मचा कहर है सब अनजाने ये कैसा शहर है भीड़ बड़ी पर अकेला पहर है। मची रही हर तरफ लूटम लूट है इसकी मानो मिली खुली छूट है सस्ती हुई महँगी ये चर्चा आम है दूध में मिले पानी सरल काम है। लूट की देखो ये…
मैं भी रखूँगा एक उपवास, होटो पर हो सदा मुस्कान हे! आसमान के उजले चाँद ,नही तू मेरे चाँद सा सुन्दर नित्य आता है नित्य जाता है, दमकने की तू करे चेष्टा तुझसे ज्यादा रोशन मुखड़ा,दिखता मेरे चाँद के अन्दर। मैं भी रखूँगा एक उपवास, लम्बी उम्र हो मेरे चाँद की कभी घटता न कभी…
“ऊंचे ऊंचे पेड़ देखो गगन को झू रहे हरि-हरि पत्तियों में मंद मुस्कान है सीना ताने एक एकजुट होकर ये तरु लक्ष्य के भेदन को देखे आसमान है।। इत तित देखन में मनोहर लगत है झुमें ये कलाओं से लगे कलाबाज है सावन की रिमझिम बूंद पड़ी तन में भीगते नहाए हुए लगे चमकदार है।।…
किसी अंजान की निःस्वार्थ मदद करना और उससे कुछ भी न चाहना, इंसानियत होती है । दुःख तकलीफ जिल्म परेशानी देना शैतानो का काम होता है देना हो तो हिम्मत दो जस्बा दो मदद दो, सहायता दो ! इससे इंसानियत दिखती है मर्द औरत को आदेश देता है अधिकारी कर्मचारिओं को मालिक मजदूर को आदेश…
पिछली पंक्ति नन्हा चेहरा बैठा हुआ था मन उदास मन में उमड़ती आशाएं छोटी मगर बहुत ही खास। स्कूल गए बगैर पढ़ाई बाला सीधे दूसरी में आई पहली की छूटी पढ़ाई मुनिया इसे समझ ना पाई। घर में नहीं हुई पढ़ाई कुछ भी ये समझ न पाई अक्षर शब्द सब अनजाने अंक संख्या सब हुए…
जिन्दगी में कीमती चेन हो ना हो मगर जिन्दगीं में सुकून की चैन होना चाहिए, चमकता सोना अपने पास हो ना हो मगर, सोने पर शरीर को आराम होना चाहिए । आदमी के पास कार हो ना हो, लेकिन संस्कार होना चाहिए, गद्दे हो सकते है कीमती नरम, पर उस गद्दे पर नींद आनी चाहिए…
जान गया मैं मेरी कीमत, जो पड़ा था अंधकार कोने में काला-कुचला बदसूरत सा, था किसी अनजाने में नजर पड़ी जब जोहरी की, इस मिट्टी के टीले में हाथ आते ही चमक उठा, किस्मत अपनी सजाने में । अपने हाथो से तरासकर, कोयला को कोहिनूर कर दे कच्ची गीली मिटटी को थाप देकर, सही रूप…
वो झुका हुआ कमजोर कंधा, धुंधली सी असहाय निगाहें, वो कांपते हुए मजबूर हाथ, लिये हुए लाठी का साथ। निहार रहे किसी अपनों को, वो मन में दबे सैकड़ों जस्बात, हमे भी मिले सहारा कोई कंधा, कोई थामे हमारा भी हाथ। आज ये झुक गए हमारे कंधे, कभी हुआ करते थे मजबूत, जिस पर बिठाकर…
आजादी का परवाना था, खादी ओढे रहता था सत्य अहिंसा के दम पर, अंग्रेजो को मार खदेड़ा था अडिक और निर्भीक जैसे चट्टानों पहाड़ सा हिला न सके कोई भी, ऐसा मजबूत ठाव था । सादा जीवन उच्च विचार, धनी मन के बापू थे एक आवाज में चल दिए सब, ऐसे मेरे बापू थे स्वदेशी…
ओझल मन अकेलापन, झुर्रियों से सना शरीर आंख धंसी, धुंधलापन बहरापन कमजोर दांत नींद नहीं आंखों में करवट से बीतती है रात एक बोझिल सा चेहरा झिलमिलाती सी आंख । टिमटिमाती आशाएं अपनों से बहुत से अरमान बस कभी-कभी हल्की सी मुस्कान थोड़ी सी खुशियों में डूबने का अरमान जीवन भर बने अपनों के बने…