कविता- “अपनी एक पहचान”
उम्मीदों का दिया चीरता अंधयारी को नन्हा नही ये छिपा रखा है चिंगारी कोमन मे दहकते लपटों की गर्मियाँ कोपहचान कर देखों इनकी नर्मियों को। उड़ना नही आसां यहां पंखो के बिना अगर सोच लो तुम आसमान को छूनाहौसलों के पंख कर मज़बूत इतना सहारे इसके छू ले धरा से आसमा। कायरो की कहीं कोई पहचान नही होतीमेहनत…
