सिवनी – हर साल 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य हीमोफीलिया और अन्य रक्तस्त्राव विकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इनके प्रति समझ विकसित करना है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!यह एक आनुवंशिक विकार है, जिसके कारण प्रभावित लोगों में रक्त का थक्का बनने की प्रक्रिया बाधित होती है।
जिले में भी इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए विभिन्न अभियान चलाए जा रहे हैं। हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती उचित उपचार की कमी है। कई बार तो उन्हें कोई उपचार ही उपलब्ध नहीं हो पाता।
इस समस्या के समाधान के लिए कई संस्थाएं जरूरतमंदों को चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने और बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कार्यक्रम आयोजित करती हैं। इन प्रयासों से न केवल मरीजों को सहायता मिलती है, बल्कि समाज में इस विकार के प्रति समझ भी बढ़ती है।
वर्तमान में रक्तस्त्राव विकारों से प्रभावित महिलाओं और लड़कियों का निदान और उपचार अभी भी अपर्याप्त है। वैश्विक रक्तस्त्राव विकार समुदाय के पास इस स्थिति को बदलने की शक्ति और जिम्मेदारी है।
सही पहचान, निदान, उपचार और देखभाल के माध्यम से महिलाओं और लड़कियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। इससे न केवल उनका जीवन बेहतर होगा, बल्कि रक्तस्त्राव विकार समुदाय भी और मजबूत होगा।
विश्व हीमोफीलिया दिवस हमें यह याद दिलाता है कि सामूहिक प्रयासों और जागरूकता के माध्यम से हम इस चुनौती का सामना कर सकते हैं और प्रभावित लोगों के लिए एक बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।

हीमोफिलिया सिर्फ एक शारीरिक ही नहीं , मानसिक रूप से भी चुनौतीपूर्ण बीमारी है। बार-बार रक्तस्राव, दीर्घकालिक इलाज , बार बार अस्पताल के दौरों आदि से मरीजों व परिजनों में खासकर बच्चों व किशोरों में मानसिक तनाव , डिप्रेशन एवं आत्महत्या की आशंका बढ़ जाती है। स्कूलों , कार्यस्थलों एवं समाज में सहानुभूति और सहयोग जरूरी है। सकारात्मक सोच, नियमित योग व ध्यान , समाजिक सहयोग एवं मनोचिकित्सकीय सलाह से इन मरीजों की भावनात्मक स्थिति एवं जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।
डॉ उमेश पाठक, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, मेडिकल कॉलेज संबद्ध जिला चिकित्सालय, सिवनी