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कविता – “ज्ञान के शिल्पकार-शिक्षक”

अबोध मन जड़ बुद्धि को, ज्ञान सींचकर बड़ा किया गीली मिट्टी थाप-थापकर, सुन्दर सुद्रण रूप दिया । था बिलकुल मैं कोरा कागज, सुन्दर लेख से पूर्ण किया ज्ञान विज्ञान संस्कार सिखाकर, सम्मान के योग्य किया ।   आज जो पहचान हमारी, सुन्दर सुखमय चमक है प्यारी सीख हमारी शिक्षक से है, हम फूल शिक्षक है…

ऑनलाइन शिक्षा का बढ़ता चलन भविष्य में बन सकता है शिक्षा का मजबूत विकल्प!

लेख- कोरोना संक्रमण काल में लॉकडाउन के दौरान एक लम्बे समय तक स्कूल कालेज सभी बंद रहे है। बच्चों को शिक्षण कार्य से जोड़े रखने के लिए ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था की गई थी। कोरोना काल में प्रयोग के तौर पर शुरू हुई ऑनलाइन शिक्षा का चलन बढ़ा है। जो शिक्षा के क्षेत्र में काफी…

कविता – “गुजरे ज़माने का वैभव”

गुजरे ज़माने का वैभव, खंडहर में कभी रहा होगा चमक सुनहरें रंगों से कभी, यह भी सजा होगा दहलीज पर रौनक, दमकती रही होगी कभी वहाँ शिखरों का दीदार ख़ुशी से, सभी ने किया होगा ।   जहाँ चलती थी, एक छत्र हुकूमत किसी की आदेश पर मर मिटने को, तैयार रहते थे सेवक क्या…

कविता – “कवि की कलम”

काश कलम में कोई, अद्भुत तेज आ जाता लिखते-लिखते, मैं साहित्यकार बन जाता लेखनी में कोई ऐसा, प्रभाव आ जाता मेरे हर शब्द में कविता सा, झरना बह जाता ।   मेरी कलम से, भावना की गहराई झलके छन्दों के श्रृंगार से, मेरी पंक्ति दमके  हर शब्द ज्ञान का, भंडार हो जाता  काव्यों में रसों का,…

कविता – “मुरली मनोहर कान्हा”

कान्हा तेरी मुरली, मधुर बाजे बोल यमुना के तट पर, ये गूंजे चारों ओर गोपिका के मन की, बनी है चितचोर बादल देखे नाचे है, जैसे वन में मोर ।   मुरली ऐसे बाजे , मन के तार ये सजाये सात सुरों के संगम से, संगीत बन जाए होठों पर ऐसी साजे, अधिकार ये जमाए गोपीओं…

कविता – “भूखा न हो कोई उदर”

हे दिखावा के पुजारी, तेरा हृदय कम्पित नही कान तुम्हारे बंद है, सिसकियाँ क्यों सुनते नही बंद हुई आँखे क्यों, दौलत के इस भार से कर क्यों न उठ रहा, दूसरों के उपकार में ।    किलकारियों की गूंज में, दफ़न हुए जस्वात क्यों थोड़ा नीचे भी देखो, आंसूओं से भीगी साँस को कहीं दूर…

कविता – “कोविड के बाद विद्यालय जीवन”

दुबके पाँव, कोरोना आया बच्चों को है, खूब सताया बन्द हुआ, हमारा स्कूल मुरझा गए, बागों के फूल। बन्द हुई , स्कूल पढ़ाई टीचर की है, याद सताई सहपाठी सब, हो गए दूर घर मे रहने, को मजबूर । नन्ही गुड़िया, समझ न पाये अब वो क्यो, स्कूल न जाये घर मे हो गए, बच्चे…

कविता – “जीवन का अंतिम सत्य”

बड़ा आश्चर्य हुआ, उस दिन मुझे मेरे जाने से उन्हें, आंसू बहाते देखा तारीफों के, पुल पर सवार होकर मेरी अच्छाईयों के, किस्से सुनाते देखा । उस दिन शरीर, बड़ा भारी लगा मेरा जिस दिन रुह, आजाद हुई तन से जो कभी पूछते नहीं थे, हाल-ए दास्ताँ आज मेरे इर्द-गिर्द भटकते हुए देखा । तरसता…

“भुजलिया उत्सव” आपसी भाईचारा एवं खुशहाली के रूप में मनाया जाना “संस्कृतिक गौरव का प्रतीक”

लेख- “बुंदेलखंड के महोबा में आल्हा-उदल-मलखान की वीरता के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं। बुंदेलखंड की धरती पर आज भी इनकी गाथाएं लोगों को मुंह जुबानी याद है।“ रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाने वाला भुजरिया पर्व का मालवा, बुंदेलखंड और महाकौशल क्षेत्र में एक विशेष महत्व के साथ मनाया जाता है। इसके लिए घरों…

कविता : “नए रंग में राखी”

सजी है राखी बाजारों में नए आकार और नए रंगों में प्यार से लिपटी डोरियों में सजी दुकाने टोलियों में । चहल बढ़ी अब संगे साथी रौनक लेकर आई है राखी कोरोना को मुह चिढ़ाने लोग आये अब मैदानों में । झुण्ड बनाकर सब खड़े है झुण्ड में देखों सब चलें है गाँव-शहर और डगर-डगर…